वस्तुत: मात्रिक छंद में ग़ढना आसान होता है, स्कूल के दिनों से ही अध्यापकों नें मात्रायें गिनवा गिनवा कर ठोस कर दिया है।
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यहाँ यह बतलाना आवश्यक हो जाता है कि उर्दू अरूज में वर्णिक छंद ही होते हैं जबकि हिंदी में वर्णिक छंद के अतिरक्त मात्रिक छंद भी।
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कभी “दोहा एक मात्रिक छंद है जिसके चार चरण होते हैं, प्रथम और तृतीय तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों में क्रमशः तेरह-तेरह और ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ होती हैं”
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भुवन में सुख-शांति भरो उठो-दिवस का अवसान समीप था, गगन कुछ लोहित हो चला 189 हरिगीतिका छंद का परिचय है-यह मात्रिक छंद है।
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लेकिन हिंदी काव्य में, ख़ासतौर से मात्रिक छंद के रूढ़ प्रयोग और भाषाई जटिलता के कारण यह छंद रूपी साधन तो बना रहा, किंतु साध्य लय छूटती गई।
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छप्पय [सं-पु.] (काव्यशास्त्र) छह चरणों वाला एक मात्रिक छंद, जिसके पहले चरण में रोला के और फिर दो चरण उल्लाला के होते हैं।
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चार फ़ेलुन की ये बहर है तो मुतदारिक की मुज़ाहिफ़ शक्ल लेकिन ये किसी मात्रिक छंद से भी मेल खा सकती है सो ये बहस का मुद्दा बन जाता है।
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लेकिन हिंदी काव्य में, ख़ासतौर से मात्रिक छंद के रूढ़ प्रयोग और भाषाई जटिलता के कारण यह छंद रूपी साधन तो बना रहा, किंतु साध्य लय छूटती गई।
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मात्रिक छंद लिखने का शउर तो मुझे भी नहीं है लेकिन इतना जानता हूँ कि मात्राएं बराबर, गीत गाने में एक ही प्रवाह में हों तो अधिक अच्छा लगता है।
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मान लीजिये छंद की वापसी हो भी गयी तो फिर दोहा छंद होगा या चौपाई होगी, मात्रिक छंद होंगे या वार्णिक या आल्हा का वीर छंद होगा या रीतिकालीन कवित्त और सवैये।