आज इस हेमंती रात में नदी के किनारे नगर के कोलाहल से दूर और नक्षत्रों के अस्फुट प्रकाश में गोरा किसी विश्वव्यापिनी अवगुंठित मायाविनी के सम्मुख आत्मविस्मृत-सा खड़ा हुआ था।
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कभी क्या तुम्हीं ने अपनी बहू से डाह करके इस मायाविनी के ज़रिये अपने बेटे का मन मोहने की कोशिश नहीं कराई थी? ज़रा सोचकर देखो! '' राजलक्ष्मी आग-सी दहक उठीं।
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वह झाड़ी उसे बताती है की वह वास्तव में सर आस्तोल्फो नामक योद्धा है जिसे उस टापू की स्वामिनी मायाविनी बहनों आल्चीना और मोर्गाना ने अपने जादू के ज़ोर से मेहंदी के पौधे में बदल दिया है।
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कपट जाल रचने वाली नारी को मायाविनी कहें तो इसमें समूची नारी जाति के लिए अपमान की बात नहीं, किन्तु उन कपट स्वभाव वाली, पुरुषों को प्रलोभित करने वाली नारियों को ऐसा कहा गया है।
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किन्तु आज के राम की बुद्धि के कपाट कब बंद हो जाएँ पता ही नहीं चलता और कब वह किसी मायाविनी के पीछे पड़कर अपनी सीता जैसी पत्नी को तज दे उस छलना के लिये.....कहना मुश्किल है।
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कहानी-खत्म नहीं होती ' शीर्षक कहानी में राकेश कुमार सिंह ने अपने कल्पना-कौशल के दम पर मौजूदा जीवन की मायाविनी पीड़ा को प्रेमचंद के दुख (' कफन ' के पात्र घीसू-माधव) के साथ कुशलतापूर्वक जोड़ा है।
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मायाविनी तथा उन चारों धूर्तों से बुद्धि में बढ़ी-चढ़ी खण्डपाना ने हँसते हुए उनके वचन से बराबरी करते हुए कहा, '' यदि अपने सिर पर मेरे लिए अंजलि बाँधकर मेरे पास बैठो तो मैं सबको भात दूँगी।
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इस बार इंद्रजाल के उद्घाटन का श्रेय जिसको था, वह मायाविनी इस समय टीन की छत के नीचे की छाया में बैठी हुई थी और अंधकार में उसकी आँखों के जादू का चलना बंद हो गया था।
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किन्तु आज के राम की बुद्धि के कपाट कब बंद हो जाएँ पता ही नहीं चलता और कब वह किसी मायाविनी के पीछे पड़कर अपनी सीता जैसी पत्नी को तज दे उस छलना के लिये..... कहना मुश्किल है।
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दिन के समय में श्रांत-क्लांत देह से काम करने जाता और शून्य स्वप्नमयी मायाविनी रात को कोसता रहता-और फिर संध्या के बाद मुझे दिन के समय का अपना वह कर्मबद्ध अस्तित्व बहुत ही तुच्छ, मिथ्या एवं हास्यकर लगने लगता।