अमीरुल मोमिनीन को जब इस हमले की इत्तिलाअ मिली, तो आप मिंबर पर तशरीफ़ ले गए और लोगों को सरकोबी के लिये उभारा, और जिहाद की तअवत दी मगर किसी तरफ़ से सदाए, '' लब्बैक '' बलन्द न हुई तो आप पेचो ताब खाते हुए मिंबर से निचे उतर आए, और उसी हालत में पियादा पा दुश्मन की तरफ़ चल खड़े हुये।
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अमीरुल मोमिनीन को जब इस हमले की इत्तिलाअ मिली, तो आप मिंबर पर तशरीफ़ ले गए और लोगों को सरकोबी के लिये उभारा, और जिहाद की तअवत दी मगर किसी तरफ़ से सदाए, '' लब्बैक '' बलन्द न हुई तो आप पेचो ताब खाते हुए मिंबर से निचे उतर आए, और उसी हालत में पियादा पा दुश्मन की तरफ़ चल खड़े हुये।
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यूं ही अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) पर सब्बो शत्म (गालम गलौज) करना और अपने आमिलों (कर्मचारियों) को इस का हुक्म देना तारीखी मुसल्लिमात (ऐतिहासिक सत्य) में से है कि जिस से इन्कार की कोई गुंजाइश नहीं और मिंबर पर ऐस अलफ़ाज़ (शब्द) कहे जाते थे कि जिन की ज़द (परिधि) में अल्लाह और रसूल (स.) भी आ जाते थे।
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मोरक्को के प्रसिद्ध पर्यटक इब्ने बतूता अपने यात्रा वृतांत में इस संबंध में वहाबी धर्म गुरुओं की ओर से रोचक कथा बयान करते हैं, वे लिखते हैं कि मैंने दमिश्क़ की जामे मस्जिद में इब्ने तैमिया को देखा जो लोगों को उपदेश दे रहा था और कह रहा था कि ईश्वर पहले आसमान पर उतरता है, जैसा कि मैं अभी नीचे उतरूंगा, फिर वह मिंबर अर्थात भाषण देने के विशेष स्थान से एक सीढ़ी नीचे उतरा।
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और वही अपने तर्ज़े अमल से मुहासिरा करने वालों की हिम्मत अफ़ज़ाई करने वाले और उन्हें अपने दामन में पनाह देने वाले हैं और उधर हज़रत उसमान का ख़ून आलूद (ख़ून भरा) कुर्ता और उन की ज़ोजा (बीवी) नायला बिन्ते फ़राफ़ेसा की कटी हुई उंगलियां दमश्क़ की जामेमस्जिद में मिंबर पर लटका दीं जिस के गिर्द सत्तर हज़ार शामी ढ़ाड़े मार मार कर रोते और क़िसासे उसमान के एह्दो पेमान (प्रतिज्ञा व संकल्प) बाधते थे।
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5-मस्जिदे नबवी की जियारत करने वाले के लिए धर्मसंगत है कि वह रौज़ा शरीफ में दो रक्अत या जितना चाहे नफ्ल नमाज़ पढ़े क्योंकि उसके बारे में फज़ीलत साबित है, चुनाँचे अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते है कि आप ने फरमाया: “ मेरे घर और मेरे मिंबर के बीच स्वर्ग की फुलवारियों में से एक फुलवारी है, और मेरा मिंबर मेरे हौज़ पर है।
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5-मस्जिदे नबवी की जियारत करने वाले के लिए धर्मसंगत है कि वह रौज़ा शरीफ में दो रक्अत या जितना चाहे नफ्ल नमाज़ पढ़े क्योंकि उसके बारे में फज़ीलत साबित है, चुनाँचे अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते है कि आप ने फरमाया: “ मेरे घर और मेरे मिंबर के बीच स्वर्ग की फुलवारियों में से एक फुलवारी है, और मेरा मिंबर मेरे हौज़ पर है।
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[जब अमीरुल मोमिनीन को पय दर पय (लगातार) यह इत्तिलाआत मिलीं कि मुआविया के असहाब (मित्र) आप के मक़बूज़ा शहरों पर तसल्लुत (सत्ता) जमा रहे हैं और यमन के आमिल उबैदुल्लाह इब्ने अब्बास और सिपहसालारे लश्कर सईद इब्ने नमरान बसर इब्ने अर्तात से मग़लूब (परास्त) हो कर हज़रत के पास पलट आए तो आप अपने असहाब (मित्रों) की जिहाद (धार्मिक युद्ध) में सुस्ती और ख़िलाफ़ वर्ज़ी (अवज्ञा) से बद दिल हो कर मिंबर की तरफ़ बढ़े और फ़रमाया]