हमारे प्राचीन मनीषियों ने फाल्गुन पूर्णिमा को विशेष महत्त्व देते हुए उस दिन गेहूं, जौ आदि की बालियां होलिका में भून कर नवान्नेष्टि करने का निर्देश दिया है और एक-दूसरे को मिष्टान सहित बांट कर खाने-खिलाने को लाभप्रद बताया है।
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लक्ष्मी जी की पूजा से पहले भगवान गणेश की फूल, अक्षत, कुमकुम, रोली, दूब, पान, सुपारी और मोदक मिष्टान से पूजा की जाती है फिर देवी लक्ष्मी की पूजा भी इस प्रकार की जाती है.
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सो अब जमीन माता के पेट भरने के काबिल जल नहीं बरसता है इससे दुखी है क्योंकि जैसा मेह बरसता है जब जमीन माता जल को पीती है, जब मेवा मिष्टान रिजक वनास्पति वगैरा अच्छी तरह से होती है, जब सब जीवाजून पलती है;
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खाद्य सुरक्षा अधिकारी विनोद शर्मा ने बताया कि उनकी टीम ने सोमवार को मूण्डवा के मधु मिष्टान एवं नमकीन भंडार से नमकीन के सेम्पल लिए, जबकि मंगलवार को नागौर के बीकानेर रोड रीको स्थित संतोषी फूड प्रोडक्टस से नमकीन बनाने वाले तेल का नमूना लिया।
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आयकर, इन्वेस्टिगेशन विंग, बिहार-झारखंड के निदेशक कुमार संजय ने बताया कि इन्वेस्टिगेशन विंग द्वारा की गयी कार्रवाई के दौरान प्रमोद लड्डू भंडार ने चालू वित्तीय वर्ष में तीन नवंबर तक 17 करोड़ के मिष्टान की बिक्री बतायी है, जबकि इस दौरान पांच करोड़ रुपये की आमदनी बतायी है.
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पंचमी के दिन नहा खा होता है यानी स्नान करके पूजा पाठ करके संध्या काल में गुड़ और नये चावल से खीर बनाकर फल और मिष्टान से छठी माता की पूजा की जाती है फिर व्रत करने वाले कुमारी कन्याओं को एवं ब्रह्मणों को भोजन करवाकर इसी खीर को प्रसाद के तर पर खाते हैं.
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पंचमी के दिन नहा खा होता है यानी स्नान करके पूजा पाठ करके संध्या काल में गुड़ और नये चावल से खीर बनाकर फल और मिष्टान से छठी माता की पूजा की जाती है फिर व्रत करने वाले कुमारी कन्याओं को एवं ब्रह्मणों को भोजन करवाकर इसी खीर को प्रसाद के तर पर खाते हैं.
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सो अब जमीन माता के पेट भरने के काबिल जल नहीं बरसता है इससे दुखी है क्योंकि जैसा मेह बरसता है जब जमीन माता जल को पीती है, जब मेवा मिष्टान रिजक वनास्पति वगैरा अच्छी तरह से होती है, जब सब जीवाजून पलती है ; इसी तरह से आदमी भी रिजक वगैरा खा-पीकर पलते है, मगार जमीन माता कौनसा पाप करती है जिससे अब पहले का सा रिजक वगैरा नहीं होता है?
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बात उन दिनों की है जब माँ काली की साधना में आन्नद आ रहा था, तभी मुझे कभी कभी श्री बगलामुखी का स्मरण हो जाता कारण काली मंदिर मे लोगो के कल्याण हेतु औघड़ गुरू जी माँ बगला का अनुष्ठान कराते, उतने दिन तक माँ को फल मिष्टान, पुआ का भोग लगता तथा काली माँ को पीत वस्त्र पहनाया जाता तो मै देख सोचता हे माँ क्या तु ही सारे रूप धारण करती हो क्या मै तेरे बगला रूप की साधना कर पाउँगा।