ट्यूनीशिया में हाल ही में संपन्न हुए संसदीय चुनाव में विजयी गठजोड़ ने इसी प्रकार अलमोतमर दल के नेता मुंसिफ़ मरज़ूक़ को देश का राष्ट्रपति बनाने पर सहमति जताई है।
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बहोत हैं ज़ुल्म के दस्त-ए-बहाना-जू के लिये जो चंद अहल-ए-जुनूँ तेरे नाम लेवा हैं बने हैं अहल-ए-हवस मुद्दई भी, मुंसिफ़ भी किसे वकील करें, किस से मुंसिफ़ी चाहें
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“लकीर-ए-दस्त का लिक्खा समझ आया नहीं मुझको! वो ही मुज़रिम वो ही मुंसिफ़ गुनाह उसका सजा मुझको!!” वाह वाह वाह..... निर्झर नीर..... कुछ नीर हमारी आखों से जहर चले..
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यदि किसी मुंसिफ़ ने सही फैसला देना हो तो उसे यह लिखना ही पड़ेगा कि मुझे इस स्कूल में से विद्यार्थी की हैसियत से भी निकाला गया था और अध्यापक की हैसियत से भी।
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(अर्थात, क़ातिल ही अपना मुंसिफ़ होगा) इस बिल से प्रधानमंत्री, न्यायाधीश, सांसद बाहर रहेंगे क्योंकि ये सभी असंदिग्ध लोग हैं और इन पर सवाल उठाने से लोकतंत्र को गहरा धक्का लगेगा!
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' ' मिट जाएगी मख़लूक़ तब इंसाफ करोगे, मुंसिफ़ हो तो अब हश्र उठा कियूं नहीं देते '' उनकी शायरी में लय और मख्सूस अंदाजे-बयां उन्हे सब से अलग बुलंदी पर खड़ा कर देता है ।
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' धूप की कचहरी' उद्धृत गीत-हमें भी ख़बर है, तुम्हें भी ख़बर है,ये जिसकी ख़बर है वो बेख़बर है॥ मुखौटों की मंडी में आबाद चेहरे,सियासत की खेती, गुनाहों के पहरे, करे कौन इंसाफ़ मुंसिफ़ ही बहरे-पसंद आया।
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मुंसिफ़ साहिब ने, तैश में आकर, कालका-मेल के इंजन को ही ‘अटैच' कर दिया. गाड़ी आई और अदालत के हरकारे ने ‘अटैचमेंट आर्डर' को इंजन के बॉयलर पर चिपका दिया और ऑर्डर की एक कॉपी स्टेशन-मास्टर को दे दी.
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जैसे धीरज के पी. सी. एस. होने पर बांसगांव झूम गया था, अख़बारों में ख़बर छपी थी, वैसा कुछ रमेश के एच. जे. एस. होने पर तो नहीं हुआ पर मुंसिफ़ मजिस्ट्रेट ज़रूर मुनक्का राय के घर आए।
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जब क़ातिल ही हमारा मुंसिफ़ हो तो अंजाम क्या होगा.....पुलिस के लिए सुबूत जुटाना कोई बड़ी बात नहीं वो किसी को भी मुजरिम क़रार दे सकती है....अगर नार्को टेस्ट में सफ़दर ने क़ुबूल किया है की वो आतंकवादी है तो उसका पुलिस ने कुछ नहीं किया..