| 41. | इसीलिए तो भगवान का मुख है कि वह प्रतिबिम्ब-दर्शन मुकुर नहीं है,
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| 42. | तुलसीदासजी ने कहा है-श्रीगुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुर सुधारि।
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| 43. | भाषा भी तब दीवार बनती है जब वह अदृश्य मुकुर की तरह हो
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| 44. | भगवान्, आदमी मुँह से बात कहकर इतनी बेसरमी से मुकुर जाता है।
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| 45. | अरथ अमित अति आखर थोरे॥ जिमि मुख मुकुर, मुकुर निज पानी ।
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| 46. | अरथ अमित अति आखर थोरे॥ जिमि मुख मुकुर, मुकुर निज पानी ।
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| 47. | मुकुर में जो प्रतिबिंब पड़ता है उसका नमूद बाहरी आकृति ही में होता है।
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| 48. | भ्रकुटियोंवृषभानुसुतालसै । जनु अनंग सरासन को हँसै मुकुर तौ पर दीपति को धानी ।
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| 49. | और कवि को हम ‘वाक्सिद्ध ' अथवा स्रष्टा तभी कहते हैं जब वह मुकुर में
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| 50. | उनकी कविताएँ उर्दू की अच्छी परम्परा में होने के अतिरिक्त युग का मुकुर थीं।
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