उक्त पंक्ति में ‘ तुम ' पर ‘ परी ' होने का आरोप होने के कारण सारोपा और ‘ परी ' में मुख्यार्थ भी सुरक्षित होने और उसका ‘
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अर्थात-मुख्यार्थ मे ंबाधा होने पर रूढ़ि या प्रयोजन को लेकर जिस शक्ति द्वारा मुख्यार्थ से सम्बन्धित अन्य अर्थ का बोध हो उसे लक्षणा शक्ति कह सकते हैं।
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अर्थात-मुख्यार्थ मे ंबाधा होने पर रूढ़ि या प्रयोजन को लेकर जिस शक्ति द्वारा मुख्यार्थ से सम्बन्धित अन्य अर्थ का बोध हो उसे लक्षणा शक्ति कह सकते हैं।
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अर्थ यह हुआ-मुख्यार्थ में बाधा होने पर रूढि या प्रयोजन के आधार पर अभिधेयार्थ से सम्बन्धित अन्य अर्थ को व्यक्त करने वाली शक्ति लक्षणा शक्ति कहलाती है।
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(१) सामीप्य सम्बन्ध-‘ अरूण ' शब्द का मुख्यार्थ ‘ सूर्य का सारथी ' है किन्तु ‘ अरूण ' का लक्ष्यार्थ ‘ सूर्य ' ही ग्रहण किया जाता है।
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उदाहरणार्थ-यदि कहा जाये कि ‘ घनश्याम गधा है ' तो इसमें पशु रूप गधा के मुख्यार्थ में बाधा है, क्योंकि घनश्याम गधे के समान चार पैर वाली आकृति वाला नहीं है।
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(२) उपादान लक्षणा या अजहतस्वार्था-लक्षण-लक्षणा में मुख्यार्थ को बिल्कुल तिरस्कृत कर दिया जाता है, लेकिन उपादान लक्षणा में लक्ष्यार्थ के साथ मुख्यार्थ का सम्बन्ध भी रहता है ; उदाहरणार्थ-
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(२) उपादान लक्षणा या अजहतस्वार्था-लक्षण-लक्षणा में मुख्यार्थ को बिल्कुल तिरस्कृत कर दिया जाता है, लेकिन उपादान लक्षणा में लक्ष्यार्थ के साथ मुख्यार्थ का सम्बन्ध भी रहता है ; उदाहरणार्थ-
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§ जब मुख्यार्थ का बोध न हो + रूढ़ि या प्रसिद्ध के कारण अथवा किसी विशेष प्रयोजन को सूचित करने के लिए, मुख्यार्थ से संबद्ध किसी अन्य अर्थ का ज्ञान हो > > लक्षणा शब्द-शक्ति।
50.
§ जब मुख्यार्थ का बोध न हो + रूढ़ि या प्रसिद्ध के कारण अथवा किसी विशेष प्रयोजन को सूचित करने के लिए, मुख्यार्थ से संबद्ध किसी अन्य अर्थ का ज्ञान हो > > लक्षणा शब्द-शक्ति।