1956 में रूस और 1976 में चीन द्वारा समाजवाद का रास्ता छोड़कर मज़दूर-किसानों के राज को मुनाफ़ाखोर पूँजीवादी भेड़ियों के हवाले कर देने के बाद समाजवादी क्रान्ति की धारा क्षीण होती चली गयी।
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यह बात अलग है कि वैश्वीकरण के इस ख़तरनाक, मुनाफ़ाखोर दौर में धर्म और भगवान के नाम पर अवैध कारोबार भी ज़ोरदार ढंग से फले फूले और कई बाबाओं के कर्म-कुकर्मों की कलई खुलती गई
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आज हम उजड़ने वाले या भविष्य में उजड़ने वाले लोगों के बीच मुनाफ़ाखोर व्यवस्था को बेनकाब करने का व इसका विकल्प देने की बात नहीं करेंगे बल्कि हम उनके संघर्षों में उनके साथ खड़े होंगे।
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यह बात अलग है कि वैश्वीकरण के इस ख़तरनाक, मुनाफ़ाखोर दौर में धर्म और भगवान के नाम पर अवैध कारोबार भी ज़ोरदार ढंग से फले फूले और कई बाबाओं के कर्म-कुकर्मों की कलई खुलती गई
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अचानक पूरी की पूरी पूँजीवादी संसद एकजुट हो गयी थी! समझ में यह नहीं आ रहा था कि ये सारे अपराधी, भ्रष्टाचारी और मुनाफ़ाखोर किसी दानवी ताकत के खि़लाफ़ एकाएक एकजुट हो गये हैं!
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यह तीनों अवधारणांए भारत में पानी के बाजार के निर्माण तथा मुनाफ़ाखोर कंपनियों के पूर्ण नियंत्रण के आडे आते हैं. जब तक पानी के बारे में यह विचार नही बदलते,पानी का धंधा पूरी तरह से नही चल पायेगा.
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तो क्या ' बुरा मत बनो ' और ' सबके लिए उपयोगी सूचना ' जैसे सूत्र वाक्यों का सहारा लेने वाली गूगल ने माइक्रोसॉफ़्ट और याहू जैसी मुनाफ़ाखोर कंपनियों की पंक्ति में रहना स्वीकार कर लिया है?
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उन्हें यह भी बतायेंगे कि निजी सम्पत्ति पर आधारित, मुनाफ़ाखोर व्यवस्था को बदल करके जबतक जनता के सामूहिक मालिकाने की व्यवस्था कायम नहीं होगी तब तक छोटी पूँजी के मालिक हो या ग़रीब किसान, मज़दूर उनकी तबाही नहीं रुकेगी।
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रही-सही कसर भारत के अधकचरे इलेक्ट्रानिक मीडिया (जो कि परम्परागत रूप से मूर्खों, बेईमानों, चमचों से भरा है) ने इस मैच को लेकर जिस तरह अपना “ज्ञान”(?) बघारा तथा बाज़ार की ताकतों (जो कि परम्परागत रूप से लालची, मुनाफ़ाखोर और देशद्रोही होने की हद तक कमीनी हैं)
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मुनाफे़ पर टिकी व्यवस्था इंसान की मेहनत और कुदरत की लूट पर चलती है, इसी लूट को व्यवस्थित करने की माँग बड़े मुनाफ़ाखोरों की होती है, इसीलिए सरकार बचपन से ही बच्चों को स्कूलों के ज़रिये मुनाफ़ाखोर व्यवस्था द्वारा चूसे जाने के लिए तैयार कर देती है।