आपसे मैं पूरी तरह सहमत हूँ इन्हें मासाहारी नहीं अपितु मुर्दाखोर कहें तो ज्यादा अच्छा होगा | आज जिस तरह हमारे कुछ मुस्लिम ब्लोगेर अपने कुतर्कों द्वारा इसे उचित बता रहे है ये निंदनिया है | बहुत ही सार्थक लेखन है आपका! आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं!!
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सुज्ञ जी बहुत ही सटीक उत्तर दिया है आपने उन मुर्दाखोर लोगों को जो अपने घृष्ट तर्कों द्वारा ऐसे मांसाहार जैसे घृणित कार्यों को जायज ठहराते हैं | ये अपने जीभ के स्वाद की पूर्ति के लिए ये लोग इश्वर के नाम का बहाना बना कर हर वर्ष करोणों जीवों का वध करते हैं!!
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कभी-कभी सारा दृश्य बदल जाता है संसार मुर्दाघर सा लगता है लोगबाग बस दौड़ती हुई लाशें कभी-कभी लगता है यहां कुछ जिंदा नहीं है कुछ मुर्दाखोर हैं और, कुछ-चीर-फाड़ करने वाले कृत्रिम रुदन है घुटी हुई चीखें सड़े हुए मांस और, उनसे रिसता लिजलिजापन इस लिजलिजेपन में सहमी हुई-सी कुछ जिंदगियां..
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मुर्दाघर कभी-कभी सारा दृश्य बदल जाता है संसार मुर्दाघर सा लगता है लोगबाग बस दौड़ती हुई लाशें कभी-कभी लगता है यहां कुछ जिंदा नहीं है कुछ मुर्दाखोर हैं और, कुछ-चीर-फाड़ करने वाले कृत्रिम रुदन है घुटी हुई चीखें सड़े हुए मांस और, उनसे रिसता लिजलिजापन इस लिजलिजेपन में सहमी हुई-सी कुछ जिंदगियां..
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प्रकृति ने खुद ही ऐसी व्यवस्था कि हुई है शेर, बाघ, लकडबघा, गिद्ध, मगरमच्छ आदि जीवों को उत्पन करके जिससे की प्रकर्ति का संतुलन बना रहे लें आज मानवों के इन दुष्कृत्यों के कारण वो संतुलन गड़बड़ा रहा है, हम इंसान हैं, हममें और मुर्दाखोर जानवरों में कुछ तो फर्क रहना चाहिए
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अब आप ही बताए जब मवेशी का मृत शरीर ही गिद्धों को नही मिलेगा तो वह खायेंगे क्या? हाँ एक और महत्व पूर्ण बात! मैने अपने जनपद खीरी में मृत मवेशियों की खाल निकालने वाले लोगों को जहरीले पेस्टीसाइट उनके मृत शरीरों पर छिड़कते देखा है, ताकि खाल निकालने के दौरान गिद्ध या अन्य मुर्दाखोर जानवर व पक्षी उन्हे परेशान न करे!
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अब आप ही बताए जब मवेशी का मृत शरीर ही गिद्धों को नही मिलेगा तो वह खायेंगे क्या? हाँ एक और महत्व पूर्ण बात! मैने अपने जनपद खीरी में मृत मवेशियों की खाल निकालने वाले लोगों को जहरीले पेस्टीसाइट उनके मृत शरीरों पर छिड़कते देखा है, ताकि खाल निकालने के दौरान गिद्ध या अन्य मुर्दाखोर जानवर व पक्षी उन्हे परेशान न करे! इन घटनाओं में सैकड़ों पक्षियों को मरते देखा हैं।
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क्युकी आज जो संसद में बैठे हैं उनको पता है यही एक तबका है हिन्दू जो मरा हुआ है और मरे हुए को तो कोई भी नहीं पूछता है सिवाय मुर्दाखोरो के और मुर्दाखोर क्या करते हैं उन मुर्दा शरीरो को नोच नोच कर खाते हैं और आज हिन्दू जिन्दा ही मुर्दा बन कर खुद को और अपनों को नुचवा रहा है और अपने को ही नोचे जाने पर ताली बजा कर खुश हो रहा है.