कुछ कहते हैं कि मूल पाप कि अवधारणा से भले लोगों को अकारण ही अपराध-भावना से जीना पड़ता है और उनकी ईश्वर की प्रति भावना प्रेम की कम और डर की ज़्यादा होती है।
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[212] कुछ कैथोलिक ब्रह्मविज्ञानियों का विचार हैं कि अबपतिस्मा हुए शिशुओं की आत्माएं जो मूल पाप में मर जाते हैं, वे उपेक्षित स्थान को जाते हैं, हालांकि यह गिरजाघर का अधिकारिक सिद्धांत नहीं है.
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दृष्टिकोण से, मूल पाप के ईसाई सिद्धांत के साथ मुख्य समस्या यह है कि यह मानव हालत का एक परिणाम के के रूप में गहरा अलगाव लोगों के अनुभव के लिए खाते में पर्याप्त शक्तिशाली नहीं है.
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दरअसल, अंग्रेजी ही नहीं, किसी भी यूरोपीय भाषा में ठीक-ठीक इस वजन का कोई शब्द नहीं मिल पाता क्योंकि मूल पाप की धारणा की तरह इसका दोष पूरी तरह वहां स्त्री के ही सिर पर थोप दिया गया है।
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(6) क्रिश्चिएनिटी की उपर्युक्त पांचों मूल मान्यताओं से जुड़ी एक महत्वपूर्ण छठी मान्यता यह है कि स्त्री ने चूंकि पुरुष को बहला-फुसलाकर ‘ मूल पाप ' में फंसाया, अत: ‘ गॉड ' ने ‘ ईव ' को शाप दिया।
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मूल पाप के धर्मशास्र के विकास के साथ-साथ, मृत्यु-शैय्या पर पहुंचने तक बपतिस्मा को टालने की आम पद्धति के विपरीत शिशु बपतिस्मा आम बन गया.[14] पेलैजियस के विपरीत, ऑगस्टाइन ने इस बात पर ज़ोर दिया कि मोक्ष-प्राप्ति हेतु बपतिस्मा धार्मिक लोगों तथा बच्चों के लिये भी आवश्यक था.
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यह भी तात्पर्य निकलता है कि यदि कोई व्यक्ति ईसाई धर्म के बारे में सुने ही न लेकिन संत का जीवन बसर करे और जीवन भर कोई पाप न करे तो भी वह नरक ही जाएगा क्योंकि वह बिना ईसाई धर्म स्वीकारे वह मूल पाप से लदा हुआ है।
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[4] यह भी तात्पर्य निकलता है कि यदि कोई व्यक्ति ईसाई धर्म के बारे में सुने ही न लेकिन संत का जीवन बसर करे और जीवन भर कोई पाप न करे तो भी वह नरक ही जाएगा क्योंकि वह बिना ईसाई धर्म स्वीकारे वह मूल पाप से लदा हुआ है।
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मरियम के संबंध में कैथोलिक विश्वासों में मूल पाप के दाग के बिना पवित्र गर्भाधान तथा जीवन के अंत में शारीरिक धारणा के साथ स्वर्ग में स्थान शामिल हैं, जिन दोनों को ही 1854 में पोप पायस नवम तथा 1950 में पोप पायस बारहवें ने सिद्धांत के रूप में अचूकता से परिभाषित किया था.
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मरियम के संबंध में कैथोलिक विश्वासों में मूल पाप के दाग के बिना पवित्र गर्भाधान तथा जीवन के अंत में शारीरिक धारणा के साथ स्वर्ग में स्थान शामिल हैं, जिन दोनों को ही 1854 में पोप पायस नवम तथा 1950 में पोप पायस बारहवें ने सिद्धांत के रूप में अचूकता से परिभाषित किया था.