' संविधान' शब्द का आशय कोई भी माना जाए किंतु मूल वस्तु यह है कि किसी देश के संविधान का पूर्ण अध्ययन केवल कुछ लिखित नियमों के अवलोकन के संभव नहीं।
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मूल वस्तु चूँकि वाणी के अगोचर है, इसलिए केवल वाणी का अध्ययन करने वाले विद्यार्थी को अगर भ्रम में पड़ जाना पड़ा हो तो आश्चर्य की कोई बात नहीं है।
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ज्यादातर समूहवाचक संज्ञा का प्रयोग रोजमर्रा की बातचीत में होता है, जैसे कि “ग्रुप” शब्द बहुत आम शब्द है और यह किसी एक प्रकार की मूल वस्तु का भान नहीं कराता.
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' संविधान ' शब्द का आशय कोई भी माना जाए किंतु मूल वस्तु यह है कि किसी देश के संविधान का पूर्ण अध्ययन केवल कुछ लिखित नियमों के अवलोकन के संभव नहीं।
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आज का मनुष्य अपनी खोई हुई मूल वस्तु कि जो सौभाग्य एवं ख़ुशी है दिशाहीन हो गया है तथा अपनी मनोकामनाओं की प्राप्ति हेतु धन, पैसा एवं वासना को कारण समझता है।
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प्रतिलिपि को मूल वस्तु के पास संग्रहित करना मूर्खता है, क्योंकि आग, बाढ़, चोरी, और विद्युतीय तरंग जैसी कई आपदाएं एक ही समय पर बैकअप को क्षति पहुँचाने का कारण बन सकती हैं.
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द्वितीय, जब हम मूल वस्तु को या बिम्ब को नहीं देख सकते, तो हमप्रतिबिम्ब की तुलना उसके मूल बिम्ब से नहीं कर सकते और न यह जान सकतेहैं कि प्रति-~ बिम्ब सही है या गलत.
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आरम्भ ÷एक फूल का नाम ' (कविता का शीर्षक) को ही आप देखें वे लिखते हैं− ÷÷शीर्षक भी कविता की एक सुविधाजनक पहचान के लिए आवश्यक है।” आगे − ÷÷कभी कभी शीर्षक कविता की मूल वस्तु को स्पष्ट करते हैं।” बिल्कुल ठीक है।
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वह आस्था को जन् म देने वाली मूल वस्तु ‘ श्रद्धा ' को ही ठुकरा चुकी है, इसलिए जो कोई श्रद्धेय बनने के लिए तत्पर होता है, उसका कॉलर पकड़ कर उसे कविता के जनपथ पर खडा़ कर देती है।
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साहित्य में लोकजीवन की प्रतिष्ठा और जयशंकर प्रसाद ' में प्रसाद जी के बहाने अपने ही विचार व्यक्त करते हुए लिखते हैं, ‘ प्रसाद जी के लिये साहित्य सोद्देश्य है, इसीलिए साहित्य में मूल वस्तु अनुभूति है, न कि अभिव्यक्ति ।