मृग तृष्णा में भटकता प्रेम जब इससे बाहर निकलता है तो न जीने का हौसला रहता है न मरने का जज्बा...बहुत सुन्दर...
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कोई भी शांति जो आपको सत्य से दूर ले जाए, एक भ्रम मात्र है, महज़ एक मृग तृष्णा है.
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राजेन्द्र परदेसी की लघुकथा मृग तृष्णा अच्छा संदेश देती है, लीला मोदी ने भी लघुकथा विधा की ‘ जिम्मेदारी ' कुशलता से निभाई है।
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कोई भी शांति जो आपको सत्य से दूर ले जाए, एक भ्रम मात्र है, महज़ एक मृग तृष्णा है.चलिये यहाँ तक विचार कर लेते हैं।
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हे राही! दूर किनारे पर ठहरी धूप को अपने आँचल मै प्रकाशित करना है, मृग तृष्णा सी, कामनायों को विराम देना हहै ।
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ये पढ़ी लिखी शिक्षित लेकिन अज्ञानी लड़कियां है जो मृग तृष्णा के चक्कर में पड़ कर खुद को और अपने परिवार को कलंकित कर रही है.
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ऐसा लगता है कि भौतिक सुखों की मृग तृष्णा में वह इतना भटक गया है कि उसे उचित-अनुचित, उपयोगी-अनुपयोगी का कुछ ज्ञान नहीं रहा।
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कभी दूर सड़क पर पानी का दिखना मृग तृष्णा का अर्थ, तब पता ही न था जीवन के सबसे बड़े अजूबे तब यही तो लगते थे।
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बुद्धिवाद की प्रधानता में जीने वाला व्यक्ति प्रायः बहिर्मुखी हो कर संसार की “ जिमि प्रति लाभ लोभ अतिकाई ” मृग तृष्णा में उलझ कर रह जाता है ।
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मृग तृष्णा में बलुआ धरती पानी सी लगती छलना अक्सर सच की एक कहानी सी लगती कोख किराये पर मिलती है अब बाजारों मेंमूल्यों की हर बात यहाँ बेमानी सी लगती एक छलाँग