वर्षा जल संग्रहण पानी की उपलब्धिता को बढ़ाता है, भूमिगत जल स्तर को नीचा होने से रोकता है, फ़लुओराइड और नाइट्रेट् स जैसे संदूषकों को कम करके अवमिश्रण भूमिगत जल की गुणवत्ता बढ़ाता है, मृदा अपरदन और बाढ़ को रोकता है और यदि इसे जलभृतों के पुनर्भरण के लिए उपयोग किया जाता है तो तटीय क्षेत्रों में लवणीय जल के प्रवेश को रोकता है।
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शुष्क क्षेत्रों में वर्षाजल से ही पैदा हो जाने वाली घासें मिट्टी और पानी के संरक्षण का कार्य करती हैं, निरंतर रहने वाली ये घासें और झाड़ियां मृदा अपरदन के अवरोधक का कार्य करती हैं, सेंट्रल एरिड जोन रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्राइ लैंड एग्रीकल्चर, हैदराबाद द्वारा किये गए शोध द्वारा यह स्पष्ट हुआ है कि वानस्पतिक समोच्च अवरोध तकनीक द्वारा जल अपवाह 97 फीसदी से 28 फीसदी तक कम हुआ.
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वर्षा जल संग्रहण के लाभ भूजल या नगरपालिका के जल कनेक्शन से होने वाले पानी की सप्लाई जैसे अन्य स्रोतों का यह पूरक हो सकना जिन क्षेत्रों में पानी का अन्य कोई स्रोत न हो, वहां निर्माण या खेती कार्य किया जा सकता है उच्च गुणवत्ता जल-शुद्ध, रसायन मुक्त होता है जलापूर्ति की कम लागत बाढ़ के वेग को कम कर मृदा अपरदन को कम करता है वर्षा जल संग्रहण सबसे उपयुक्त होता है, जहां...
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जिन वनों के साथ छेड़ छाड़ नहीं की जाती, उनकी मृदा हानि की दर बहुत कम होती है, लगभग २ मीट्रिक टन प्रति वर्ग किलोमीटर (प्रति वर्ग मील ६ छोटे टन)वनों की कटाई आमतौर पर मृदा अपरदन (erosion) की दर को बढा देती है, क्योंकि प्रवाह (runoff)की मात्रा बढ़ जाती है और पेडों के व्यर्थ पदार्थों से मृदा का संरक्षण कम हो जाता है.यह अत्यधिक रिसाव युक्त उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों की मृदा के लाभकारी हो सकता है.
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इतना ही नहीं नित नूतन औद्योगिक इकाइयों के शुरू होने से उससे निकलने वाले इलैक्ट्रानिक कचरे से नाभिकीय प्रदूषण, समुद्री प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण व वायु प्रदूषण (जहरीली गैसें, धुंए व उड़ी राख) तेजी से अपनी विनाश लीला फैला रहे हैं और अब ऐसा लगने लगा है कि अचानक बाढ़, सूखा, मृदा अपरदन, अम्ल वर्षा जैसी प्राकृतिक आपदाएं बढ़ने के साथ ही वर्तमान में मानवता भी सुरक्षित नहीं प्रतीत हो रही है।
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परिणामस्वरूप, वनस्पति और भूमि के बहुत बड़े क्षेत्र ख़त्म हो गए हैं, और मृदा अपरदन तथा मरुस्थलीकरण हो गया है.लगभग आधा मूल वनस्पति आवरण नष्ट हो चुका है, जिसके कारण हैं अतिक्रमण, कटाई, और कठोर प्राकृतिक परिस्थितियों में जरुरत से ज्ञाता चराई.वनों और जंगलों का लगभग ९५ प्रतिशत जो कभी आइसलेंड के २५ क्षेत्र को आवरित करता था, ख़त्म हो चुका है.वनों को फिर से लगाने और वनस्पति को फिर से उगाने की वजह से भूमि के छोटे क्षेत्रों को बहाल किया गया है.
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परिणामस्वरूप, वनस्पति और भूमि के बहुत बड़े क्षेत्र ख़त्म हो गए हैं, और मृदा अपरदन तथा मरुस्थलीकरण हो गया है.लगभग आधा मूल वनस्पति आवरण नष्ट हो चुका है, जिसके कारण हैं अतिक्रमण, कटाई, और कठोर प्राकृतिक परिस्थितियों में जरुरत से ज्ञाता चराई.वनों और जंगलों का लगभग ९५ प्रतिशत जो कभी आइसलेंड के २५ क्षेत्र को आवरित करता था, ख़त्म हो चुका है.वनों को फिर से लगाने और वनस्पति को फिर से उगाने की वजह से भूमि के छोटे क्षेत्रों को बहाल किया गया है.
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लेकिन सच है कि आबादी केवल मंहगाई के लिए जिम्मेदार नहीं है बल्कि देश में जितनी भी समस्याएं है चाहे वो बेरोजगारी, अशिक्षा, गरीबी, भूखमरी, भ्रष्टाचार, अकाल, मृदा अपरदन, वृक्ष कंटाव, दुर्घटना, अपराध, बात-बात पर तनातनी (हाई टेंपर्ड), सांस्कृतिक बदलाव, पाश्चात्यीकरण, जातिवाद, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद, आतंकवाद, नस्लभेद, आरक्षण, राजनीति में अपराधीकरण, अमीर-गरीब में बढ़ती खाई, सामाजिक एवं शारीरिक शोषण और न जाने ऐसी कितनी समस्याएं जो इस बढ़ती आबादी ने हमें सौगात में दिया है।