ऊर्जा की यह मुक्ति दर दुनिया की ऊर्जा खपत से 70 गुना अधिक है और या दुनिया भर में विद्युत् क्षमता का 200 गुना देती है या प्रति मिनट एक 10 मेगाटन परमाणु बम के विस्फोट के बराबर है.
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वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि वातावरण में कार्बन की मात्रा को 7. 5 लाख मेगाटन तक सीमित रखा जाए तो इस बात की 75 प्रतिशत संभावना है कि ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस तक नियंत्रित किया जा सकेगा।
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धरती के तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा की वृद्धि नहीं हो, इसके लिए ज़रूरी है कि वातावरण में कार्बन की मात्रा में 250 अरब टन या 2.5 लाख मेगाटन से ज़्यादा की वृद्धि नहीं हो.
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एक किलोटन से लेकर 60 मेगाटन और अधिक तक की शक्ति के आणविक बमों का निर्माण हो चुका है और अनुमान है कि 1994 के अन्त तक विश्व में 15000 से भी अधिक प्लूटोनियम बमों का निर्माण प्रतिवर्ष किया जाने लगेगा ।
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2 डिग्री का लक्ष्य क्यों बीबीसी के अनुसार धरती के तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा की वृद्धि नहीं हो, इसके लिए ज़रूरी है कि वातावरण में कार्बन की मात्रा में 250 अरब टन या 2.5 लाख मेगाटन से ज़्यादा की वृद्धि नहीं हो।
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वैज्ञानिकों ने अलग-अलग ढंग से गणना करके ये निष्कर्ष निकाला है कि वातावरण में कार्बन की मात्रा को 7. 5 लाख मेगाटन तक सीमित रखा जाए तो इस बात की 75 प्रतिशत संभावना है कि ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस के दायरे में समेटा जा सकेगा।
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वैज्ञानिकों ने अलग-अलग ढंग से गणना करके यह निष्कर्ष निकाला है कि वातावरण में कार्बन की मात्र को 7. 5 लाख मेगाटन तक सीमित रखा जाए, तो इस बात की 75 फीसदी संभावना है कि ग्लोबल वार्मिग को दो डिग्री सेल्सियस के दायरे में समेटा जा सकेगा.
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मैंने उनसे विद्युत उत्पादन के मामले में भारत और चीन की स्थिति का अंतर पूछा तो उन्होंने बताया कि चीनी अधिकारियों से इस पर चर्चा हुई थी तो जानकारी हुई कि भारत में जहां अभी तक केवल डेढ़ लाख मेगाटन बिजली का उत्पादन हो रहा है वहीं चीन में १ ५ लाख टन बिजली पैदा की जाती है।
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(के साथ या, वैकल्पिक रूप से, “नमकीन”) एक अत्यधिक रेडियोधर्मी सामग्री के आवरण में लिपटा एक 200 मेगाटन हाइड्रोजन बम से जुड़े एक सोवियत प्रलय का दिन डिवाइस के कई अपुष्ट, वास्तविक रिपोर्ट कर रहे हैं, आम तौर पर पृथ्वी के वायुमंडल तर करने के लिए पर्याप्त मात्रा में, कोबाल्ट होने के लिए कहा घातक असर से डिवाइस विस्फोट किया जाना चाहिए.
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भारत के पास त्रि-आयामी डिलीवरी सिस्टम है, पर्याप्त देत्रेंटहै. टी. एन का खोफ तो टी. एन. वेपन्स की होड़ से पहले ही गालिब था, तभी तो मेगा-साइज़ पर इतराता-इठलाता अमरीका अपना टी. एन. परिक्षण २ ५ मेगाटन तक सीमित रखने के लिए विवश था, क्योंकि यह तीर नहीं तुक्का था, जो लक्ष्य च्युत हो एक बड़े इलाके को नेस्तनाबूद कर सकता था.