देवा वाहक, कार्यकुशल,तेजस्वितायुक्त,गतिशील अति तीक्षण,मेधा-सम्पन्न,श्रेष्ठ स्थान के निवासी,सहसत्रों के पोषणकर्ता और अतिपावन अग्निदेव अपनी तेजस्विता को प्रगत करते हुए यज्ञवेदी पर सुशोभित होते हैं ।
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इससे पूर्व भी वे अनेक व्रतो की दीक्षा लेते रहे किंतु समाप्ति के अवसर पर उनकी यज्ञवेदी पर रुधिर, मांस इत्यादि फेंककर मारीच और सुबाहु नामक दो राक्षस विघ्न उत्पन्न करते हैं।
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नारी का स्थान यज्ञवेदी से बाहर हैं (शतपथ ब्रह्मण २ ७ / ४) अथवा कन्या और युवती अग्निहोत्र की होता नहीं बन सकती (मनु ११ / ३ ६)
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इससे पूर्व भी वे अनेक व्रतो की दीक्षा लेते रहे किंतु समाप्ति के अवसर पर उनकी यज्ञवेदी पर रुधिर, मांस इत्यादि फेंककर मारीच और सुबाहु नामक दो राक्षस विघ्न उत्पन्न करते है।
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इससे पूर्व भी वे अनेक व्रतो की दीक्षा लेते रहे किंतु समाप्ति के अवसर पर उनकी यज्ञवेदी पर रुधिर, मांस इत्यादि फेंककर मारीच और सुबाहु नामक दो राक्षस विघ्न उत्पन्न करते हैं।
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पर्यटक दुर्ग की ऎतिहासिक प्राचीर, यज्ञवेदी, गणेश मन्दिर, बावन देवरी, गोलेराव मन्दिर, मामादेव मन्दिर, प्रताप जन्म स्थली, महादेव मन्दिर एवं दुर्ग का शिखर बादल महल देख रहे हैं।
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यज्ञवेदी पर जब हम इन मंत्रों का उच्चारण करते हैं तो वह केवल औपचारिकता भर नही होते, अपितु वह हमारे राष्ट्रवाद का सुंदर झरना होता है जो हमें अपने आदर्श से परिचित कराता है।
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भारत शांति की आराधना करे, इससे किसी का भी विरोध नहीं हो सकता. व्यावहारिक कठिनाई केवल यह है कि ऋषि ने अगर यज्ञवेदी पर काफी बंदूकें जमा नहींकी हैं, तो उसका शांति-यज्ञ भी पूरा नहीं होगा.
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इष्ट प्राप्ति के निमित्त यज्ञवेदी के निर्माण की आधार शिला को भी मनुष्य अपनी नासमझी से क्या सिला दे रहा है, इसका उदाहरण है ऊपर अंकित आपका मंतव् य..... आभार, अजित जी. ============================================== चन्द्रकुमार
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इसके अलावा वन देवी स्थान, राम दरबार, चरण पादुका मंदिर, यज्ञवेदी मंदिर, तुलसी स्थान, सीता रसोई, मत्तगयेन्द्रनाथ जी श्री, कैकेयी मंदिर, रामदर्शन मंदिर आदि यहां की भूमि को सुशोभित कर रहे हैं।