उमेश चतुर्वेदी1957 में लखनऊ से प्रकाशित युगचेतना पत्रिका में रघुवीर सहाय की हिंदी पर एक कविता छपी थी, जिसमें उन्होंने हिंदी को दुहाजू की नई बीवी बताया था।
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2) पुस्तक में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और दिनकर के काव्य में भारतीय संस्कृति, राष्ट्रीयता और युगचेतना को प्रस्तुत करते हुए उनका तुलनात्मक अनुशीलन करने का विनम्र प्रयास है।
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मानो, तनाव और अनुभव की भाषा को स्वाभाविक कहने की भाषा में तब्दील करने के लिए युगचेतना और मूल्य भावना स्वयं उनके शब्दों को अर्थ दे रही हो।
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प्रस्तुत पुस्तक में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और दिनकर के काव्य में भारतीय संस्कृति, राष्ट्रीयता और युगचेतना को प्रस्तुत करते हुए उनका तुलनात्मक अनुशीलन करने का विनम्र प्रयास है।
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आज का गुजराती कथा साहित्य और काव्य विशेष रूप से भारतीय समाज के सभी पहलुओं का अंकन कर भारतीय युगचेतना के वाणी देने में अपना समुचित योग दे रहा है।
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आज का गुजराती कथा साहित्य और काव्य विशेष रूप से भारतीय समाज के सभी पहलुओं का अंकन कर भारतीय युगचेतना के वाणी देने में अपना समुचित योग दे रहा है।
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आज का गुजराती कथा साहित्य और काव्य विशेष रूप से भारतीय समाज के सभी पहलुओं का अंकन कर भारतीय युगचेतना के वाणी देने में अपना समुचित योग दे रहा है।
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उमेश चतुर्वेदी 1957 में लखनऊ से प्रकाशित युगचेतना पत्रिका में रघुवीर सहाय की हिंदी पर एक कविता छपी थी, जिसमें उन्होंने हिंदी को दुहाजू की नई बीवी बताया था।
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‘ नक़वी साहब, आप ही बतलाइए क्या युगचेतना, कालतत्व में परिच्छेदक-परिच्छिन्न भाव का संज्ञान नहीं कराती? विज्ञानघनसत्ता मय भग्न विश्व की द्रव्यभूता महाशक्ति क्या आक्रामकता की संप्रेषणीय महत्ता का बिम्ब नहीं है?
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“उपन्यासकार को युग चेतना को लक्ष्य में रखते हुए हक़ीकतों का संकलन या पसंद करने का स्वातंत्र्य तो सहज रूप से होता है, किन्तु अपने कथावस्तु या चरित्रलेखन की दृष्टि से युगचेतना के साथ तद्नुरूप नई घटनाओं का सर्जन करने, घटनाओं में परिवर्तन करने का स्वातंत्र्य भी होता है।