| 41. | रिपु जुवती मुख कुमुद मन्द जन चक्रवाक अनुरागे ।।
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| 42. | क्षमाशील हो रिपु समक्ष तुम हुए विनीत जितना ही
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| 43. | उसके भीतर छरिपु बैठे हैं और वे रिपु उसकी
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| 44. | अपनी रक्षा यदि करे, रिपु का मिटे घमंड ॥
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| 45. | कुवृतियों पर प्रहार किया, आलस्य रिपु का संहार किया
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| 46. | तुलसी अंबुज अंबु बिनु तरनि तासु रिपु होइ ॥
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| 47. | भिड़े बिना रण-भूमि में, जिससे रिपु हों भीत ॥
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| 48. | उसपर जय पाना रहा, रिपु को अति आसान ॥
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| 49. | रिपु रन जीति सुजस सुर गावत ।
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| 50. | रिपु को भी संभव नहीं, देना उतना ताप ॥
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