हेजाज़ी भी काफी लोकप्रिय है साथ ही मब्शूर, मिताब्बक, फोल, अरेका, हरेसा, कबाब मेरू, शोराबाह हरेरा (हरेरा सूप), मिगाल्गल, माधबी (पत्थर पर चिकन ग्रील्ड) मदफुन (शाब्दिक अर्थ दफन), मग्लूबह, किब्दाह, मंज़लाह (आमतौर पर ईद-उल-फितर में खाया जाता है), मासूब, मगलिया (फलाफेल का हिजीज़ी संस्करण), सलेग (दूध चावल से बनी हिजाज़ी पकवान), हुमुस, बिरयानी रूज़ काब्ली, रूज़ बुखारी, सैयाडिया जैसे व्यंजनों को शहर भर के पारम्परिक रेस्तरां में पाया जा सकता है.
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जब किसी व्यक्ति को देखते हैं कि वह धनवान है किन्तु निर्धनता के भय से पैसे ख़र्च नहीं करता या ऐसा व्यक्ति जो हर दम पैसे के चक्कर में रहता है कि कहीं से मिल जाए और उसे जमा करे उस समय फ़ारसी भाषा की यह कहावत कही जाती हैः येक उम्र गेदाई मी कुनद कि येक रूज़ बे गेदाई नयुफ़्तद अर्थात लंबे समय तक भीख मांगता है कि कहीं उसे एक दिन भीख न मांगनी पड़ जाये।