बाह्य जगत के बारे में रूपकात्मक (figurative), संवेदनात्मक सूचनाएं (ध्वनियों के संवेदन, गंधें, दृश्य बिंब, आदि) दाये गोलार्ध में स्मृति की शक्ल में संचित (accumulated), संसाधित (processed), और संग्रहित (stored) होती हैं।
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पुरानी पीढी के वयोवृद्ध गायकों को तो शायद मालूम ही होगा कि वाजिद अली शाह की सुप्रसिद्ध शरीर और आत्मा के प्रतीकों को लेकर लिखी रूपकात्मक ठुमरी बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय सदियों से प्रचलित है जिसके बोल लोककंठ में समा गये हैं-चार कहार मिलि डोलिया उठावै मोरा अपना पराया टूटो जाय आदि।
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पुरानी पीढी के वयोवृद्ध गायकों को तो शायद मालूम ही होगा कि वाजिद अली शाह की सुप्रसिद्ध शरीर और आत्मा के प्रतीकों को लेकर लिखी रूपकात्मक ठुमरी ‘ बाबुल मोरा नैहर छूटो जा य... ' सदियों से प्रचलित है जिसके बोल लोककण्ठ में समा गये हैं-‘ चार कहार मिलि डोलिया उठावै मोरा अपना पराया छूटो जा य...
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फेबल ' ' बताकर कविता के आदि, मध्य और उत्तम प्रदेश में विचरने के बाद उन्हें यह सुबोध मिला कि “ कविजी का यथार्थ से कोई जीवंत सम्बन्ध नहीं है-वह एक रूपकात्मक सम्बन्ध है जो एक मृत रूपक (वक्त का पहिया) के अनुरूप ही ' मृत ' है ”... यह क्या कविता नहीं कह रही गिरिराज जी?...
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प्रतिपाठक वह है जो किसी भी भिन्न व्याख्या के प्रति अन्धा है (इस अर्थ में ज्यार्गी का अन्धत्व रूपकात्मक कहा जा सकता है), लेकिन जो अपने अन्धत्व के बावजूद शक्तिहीन नही क्योकि वह अपने एकाश्म पठन से उपलब्ध ज्ञान का आगार है (‘ज्ञान संरक्षण की वस्तु है, शोध की नहीं'-ज्यार्गी) और जिसने इस ज्ञान को शक्ति (पॉवर) में रूपान्तरित कर लिया है (ज्यार्गी इस मठ में सर्वशक्तिमान है)।
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फंसाव ऐसा है कि ' ' फेबल '' बताकर कविता के आदि, मध्य और उत्तम प्रदेश में विचरने के बाद उन्हें यह सुबोध मिला कि “ कविजी का यथार्थ से कोई जीवंत सम्बन्ध नहीं है-वह एक रूपकात्मक सम्बन्ध है जो एक मृत रूपक (वक्त का पहिया) के अनुरूप ही ' मृत ' है ”... यह क्या कविता नहीं कह रही गिरिराज जी?...
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कविता कोमलकान्त पदावली में नहीं, बल्कि जीवन की जटिल भाव-स्थितियों के एहसास में है और यह एहससास ही मंटो की भाषा को रूपकात्मक स्तर तक उठा देता है, जिस के कारण मंटो की कहानियां निर्मल वर्मा के इस कथन का प्रमाण हो जाती हैं कि ' कहानी अपनी छोटी सी जीवन यात्रा में उस अजानी और खाली जमीन को पार करती है जो भाषा और समय, कविता और इतिहास के बीच फैली है।
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कविजी का यथार्थ से कोई जीवंत सम्बन्ध नहीं है-वह एक रूपकात्मक सम्बन्ध है जो एक मृत रूपक (वक्त का पहिया) के अनुरूप ही ' मृत ' है ; भावुक अपील के लिए बच्ची है ; और कविजी के यथार्थ बोध को शॉक देने के लिए एक विलक्षण बलिष्ठ है, पूरा ढांचा एक नीति कथा का है जिसके अंत में कविजी को ' सीख ' भी मिल जाती है और अब वे वक्त के मृत रूपक की बजाय यथार्थ के एक सरल अनार्जित रूपक साइकल पर कविता लिखने लग जाते हैं.