' केटुपट' और 'लेमंग' बाँस में पकाए गए लसदार चावल के साथ 'रेनडंग' एक तीखे और लजीज गोमांस या मुर्गी के व्यंजन और 'सेरुंडिंग', एक प्रकार का सूखा मांस लोमक आदि पकवानों के बिना उत्सव पूरा नहीं होता है।
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हाल-फ़िलहाल के वर्षों में कुछ मद्यनिर्माताओं नें चारे से बने लसहीन बियर का निर्माण किया है जिसमें यवसार का इस्तेमाल उनकें नहीं होता जो लसदार अनाज जैसे कि जौ, गेहूं, जौ और राई को हजम नहीं कर सकते.
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मृगशावक अपनी मां से बहुत दूर नहीं जाता अन्यथा वह किसी का शिकार बन जाएगा, मांसभक्षी लसदार पौधा अपने शिकार को पत्ती में पकड़ता है और छुई-मुई के पौधे को छूते ही इसकी पत्तियां मुरझाकर और नीचे की तरफ झुक कर बंद हो जाती हैं।
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पत्ते सभी बेहद काम के होते हैं पर इसमें जो डेढ़-दो फीट लम्बी काले रंग की फलियाँ लगती हैं, ये शीतकाल में पकती हैं, इनके भीतर बने हुए छोटे-छोटे खाने में काले रंग का गोंद के समान एक लसदार सा पदार्थ भरा मिलेगा जिसे गिरी कहते हैं
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छाल, फल,फूल और पत्ते सभी बेहद काम के होते हैं पर इसमें जो डेढ़-दो फीट लम्बी काले रंग की फलियाँ लगती हैं, ये शीतकाल में पकती हैं, इनके भीतर बने हुए छोटे-छोटे खाने में काले रंग का गोंद के समान एक लसदार सा पदार्थ भरा मिलेगा जिसे गिरी कहते हैं
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अलक़ह परिवर्तित होता है और ‘‘ मज़ग़ता ‘‘ के स्वरूप में आता है, जिसका अर्थ है कोई वस्तु जिसे चबाया गया हो यानि जिस पर दांतों के निशान हों और कोई ऐसी वस्तु हो जो चिपचिपी (लसदार) और सूक्ष्म हों, जैसे च्युंगम की तरह मुंह में रखा जा सकता हो।
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ोती बूटी छत्ता वाली होती है | इसका पत्ता लसदार फिका होता है | फूल बारीक रूई के समान पीला और छोटा होता है | उसकी शाखा लाल रंग की ओंगा के समान झकरीली होती है | यह गर्मियों में करील वृक्ष के नीचे कँकरीली भूमि पर मिलती है | वर्षा ऋतु में नहीं मिलती |
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इसके बाद परवरदिगार ने ज़मीन के सख़्त व नरम और ‘ ाूर व ‘ ाीरीं हिस्सों से ख़ाक को जमा किया और इसे पानी से इस क़दर भिगोया के बिल्कुल ख़ालिस हो गयी और फ़िर तरी में इस क़दर गूंधा के लसदार बन गई और इसे एक ऐसी सूरत बनाई जिसमें मोड़ भी थे और जोड़ भी।
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परवर दिगारे आलम ने ज़मीन के सख़्त व नर्म और शूर व शीरीं हिस्सों से ख़ाक को जमा किया और उसे पानी से इस क़दर भिगोया कि बिल्कुल ख़ालिस हो गई और फिर तरी में इस क़दर गूँधा कि लसदार बन गई और उस से एक ऐसी सूरत बनाई कि जिस में मोड़ भी थे और जोड़ भी।
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वैसे तो अमलतास की जड़, छाल, फल, फूल और पत्ते सभी बेहद काम के होते हैं पर इसमें जो डेढ़-दो फीट लम्बी काले रंग की फलियाँ लगती हैं, ये शीतकाल में पकती हैं, इनके भीतर बने हुए छोटे-छोटे खाने में काले रंग का गोंद के समान एक लसदार सा पदार्थ भरा मिलेगा जिसे गिरी कहते हैं