त्रिलोक चंद महरूम किसे आवाज दूँ किसको आती है मसीहाई किसे आवाज दूँ बोल ए खूंखार तन्हाई किसे आवाज दूँ चुप रहूँ तो हर नफ़स ड्सता है नागन की तरह आह भरने में है रुसवाई किसे आवाज दूँ उफ़ खामोशी की ये आहें दिल को भरमाती हुई उफ़ ये सन्नाटे की शहनाई किसे आवाज दूँ जोश मलीहाबादी बारहा ऐसे भी अपने दिल को बहलाना पडा बारहा ऐसे भी अपने दिल को बहलाना पड़ा शाम-ऐ-तनहाई में यादों से लिपट जाना पड़ा