आचार्य चतुरसेन का वयम् रक्षाम: पढ़ें तो पता चलेगा कि भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा रक्ष संस्कृति भी रही है, जिसमें स्त्री को भी अपने काम संबंधी आचरण में उतनी ही स्वतंत्रता-स्वछंदता प्राप्त थी, जितनी किसी भी पुरुष को।
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डॉ श्रीमती अजित गुप्ता प्रकाशित पुस्तकें-शब्द जो मकरंद बने, सांझ्ा की झंकार (कविता संग्रह), अहम् से वयम् तक (निबन्ध संग्रह) सैलाबी तटबन्ध (उपन्यास), अरण्य में सूरज (उपन्यास) हम गुलेलची (व्यंग्य संग्रह), बौर तो आए (निबन्ध संग्रह), सोने का पिंजर-अमेरिका और मैं (संस्समरणात्मक यात्रा वृतान्त) आदि।
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अतः जिसे हम प्रेम समझते हैं, वह प्रकृति प्रदत्त जीन सुरक्षा साधन है जो हमें विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित करने के साथ साथ पारिवारिक बनाता है, जिसमें “ अहम् ” के बाद “ आवाम् ” व बाद में “ वयम् ” का सृजन होता है.
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उस समय (वयम्) हम (धिया) अपनी बुद्धि अर्थात् सोच समझ अनुसार (नमो) नमस्कार, स्तुति, साधना से (भरन्त् एमसि) प्राय भक्ति का भार अधिक भरते हैं अर्थात् फिर भी हम अपनी सूझ-बूझ से ही भक्ति करके पूर्ति प्राय करते हैं।
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जब हम राष्ट्र के आगे सांस्कृतिक शब्द का प्रयोग करते हैं, तब तत्काल हमारा ध्यान, राष्ट्र जनों के उन जीवन-मूल्यों की ओर जाता है जो शाश्वत ही नहीं, राष्ट्र जीवन को अहम् से वयम् की ओर तथा सयम् से ओम तत्सत् की ओर ले जाने वाले हैं।
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अजित गुप्ता: प्रकाशित पुस्तकें-शब्द जो मकरंद बने, सांझ की झंकार (कविता संग्रह), अहम् से वयम् तक (निबन्ध संग्रह) सैलाबी तटबन्ध (उपन्यास), अरण्य में सूरज (उपन्यास) हम गुलेलची (व्यंग्य संग्रह), बौर तो आए (निबन्ध संग्रह), सोने का पिंजर-अमेरिका और मैं (संस्मरणात्मक यात्रा वृतान्त), प्रेम का पाठ (लघु कथा संग्रह) आदि।
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ज्योतिष की गणनाओं पर आधारित डॉ. सम्पूर्णानन्द का लघु उपन्यास “ पृथ्वी से सप्तर्षि मंडल '' (1953) एवं ‘ वैशाली की नगर वधू '', ‘‘ वयम् रक्षामः ” जैसी विख्यात कृतियों के सृजक आचार्य चतुरसेन शास्त्री की लेखनी द्वारा निसृत ‘ रवग्रास ' उनकी उर्वर मेधा का चमत्कार है।
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आचार्य चतुरसेन द्वारा रचित बहुचर्चित उपन्यास ' वयम् रक्षामः' तथा पंडित मदन मोहन शर्मा शाही द्वारा तीन खंडों में रचित उपन्यास 'लंकेश्वर' के अनुसार, शिव का परम भक्त, यम और सूर्य तक को अपना प्रताप झेलने के लिए विवश कर देने वाला, प्रकांड विद्वान, सभी जातियों को समान मानते हुए भेदभावरहित समाज की स्थापना करने वाला, आर्यों की भोग-विलास वाली 'यक्ष' संस्कृति से अलग सभी की रक्षा करने के लिए 'रक्ष' संस्कृति की स्थापना करने वाला लंकेश 'सिर्फ बुरा' कैसे कहा जा सकता है...
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आचार्य चतुरसेन द्वारा रचित बहुचर्चित उपन्यास ' वयम् रक्षामः ' तथा पंडित मदन मोहन शर्मा शाही द्वारा तीन खंडों में रचित उपन्यास ' लंकेश्वर ' के अनुसार, शिव का परम भक्त, यम और सूर्य तक को अपना प्रताप झेलने के लिए विवश कर देने वाला, प्रकांड विद्वान, सभी जातियों को समान मानते हुए भेदभावरहित समाज की स्थापना करने वाला, आर्यों की भोग-विलास वाली ' यक्ष ' संस्कृति से अलग सभी की रक्षा करने के लिए ' रक्ष ' संस्कृति की स्थापना करने वाला लंकेश ' सिर्फ बुरा ' कैसे कहा जा सकता है...