अतः मूत्र के गहरे रंग का अर्थ है कि शरीर में जल का अभाव है, तथा मूत्र के वर्णहीन होने का अर्थ है कि शरीर में जल की मात्रा आवश्यकता से अधिक है अथवा शरीर में खनिजों का अभाव है।
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वर्णहीन समाज की आंकाक्षा के पैरोकार और दलित साहित्य के नाम का झन्डा थामें कई पन्डे प्रेमचन्द को सूली पर चढ़ा देने के लिए उनकी रचनाओं का मनमाना अर्थ और सन्देश खोज कर अपने स्वार्थ के प्रेतों के नाम पर झड़-फूंक करते रहते हैं।
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शूद्रों के लिए योनी दोष की उपेक्षा न करना ज्योतिष शास्त्र सम्मत है किंतु आज के वर्णहीन समाज की स्थिति में ब्राह्मण कौन हैं? क्षत्रिय कहां हैं? वैश्य कौन है? शूद्र किसको माने? क्योंकि समाज की संपूर्ण कार्य और कर्त्तव्य प्रणाली आज गड्ड मड्ड हो गयी है।
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हाँ चन्दन, तुम्हारे शिथिल आलिंगन में मैंने कितनी बार इन सबको रीतता हुआ पाया है मुझे ऐसा लगा है जैसे किसी ने सहसा इस जिस्म के बोझ से मुझे मुक्त कर दिया है और इस समय मैं शरीर नहीं हूँ … मैं मात्र एक सुगन्ध हूँ-आधी रात में महकने वाले इन रजनीगन्धा के फूलों की प्रगाढ़, मधुर गन्ध-आकारहीन, वर्णहीन, रूपहीन …