उर्दू-पंजाबी में वर्ण विपर्यय के साथ इसका रूप शलवार हो गया है और अन्य भारतीया भाषाओं में यह सलवार के रूप में जाना जाता है।
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उर्दू-पंजाबी में वर्ण विपर्यय के साथ इसका रूप शलवार हो गया है और अन्य भारतीया भाषाओं में यह सलवार के रूप में जाना जाता है।
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वर्ण विपर्यय से इसका फारसी रूप हुआ मग्ज जिसमें इसके वे सभी अर्थ सुरक्षित रहे जो मूल संस्कृत-अवेस्ता में थे यानी सार, तत्व, निष्कर्ष, नतीजा, अक्ल, बुद्धि आदि।
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संस्कृत के लिप्त का अवेस्ता में वर्ण विपर्यय के जरिये प्लित् या प्लीत् रूपांतर मुमकिन है और फिर इसने ही पलीत होते हुए पलीद का रूप लिया हो।
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दिलचस्प बात यह कि सेमिटिक भाषा परिवार की कई भाषाओं में “अम्मु” शब्द का वर्ण विपर्यय होकर माँ के आशय वाले शब्द बने हैं जैसे अक्कद में “उम्मु”
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व का लोप होकर थ मे निहित त+ह ध्वनियों का अन्वय होता है और फिर वर्ण विपर्यय के जरिये व का स्थान ह लेता है और बनता है सेहत।
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नेदीयस् या नेदिष्ट जैसे रूपों से वर्ण विपर्यय के जरिये ही अवेस्ता में नज्द शब्द का विकास हुआ जो बरास्ता पह्लवी होते हुए फारसी में नज़्द और फिर नज़्दीक में ढल गया।
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व का लोप होकर थ मे निहित त + ह ध्वनियों का अन्वय होता है और फिर वर्ण विपर्यय के जरिये व का स्थान ह लेता है और बनता है सेहत ।
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नेदीयस् या नेदिष्ट जैसे रूपों से वर्ण विपर्यय के जरिये ही अवेस्ता में नज्द शब्द का विकास हुआ जो बरास्ता पह्लवी होते हुए फारसी में नज़्द और फिर नज़्दीक में ढल गया।
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वर्ण विपर्यय से इसका फारसी रूप हुआ मग्ज जिसमें इसके वे सभी अर्थ सुरक्षित रहे जो मूल संस्कृत-अवेस्ता में थे यानी सार, तत्व, निष्कर्ष, नतीजा, अक्ल, बुद्धि आदि।