मेरा कार्यक्रम था सन्ध्या-समय वसन्ती रंग की साड़ी पहनकर बालों में कंघी, फूलों का हार गले में डालकर, दर्पण हाथ में लिये बाग में चले जाना और पहरों देखा करना।
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मेरा कार्यक्रम था सन्ध्या-समय वसन्ती रंग की साड़ी पहनकर बालों में कंघी, फूलों का हार गले में डालकर, दर्पण हाथ में लिये बाग में चले जाना और पहरों देखा करना।
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कहाॅं भाग कर जायेगा प्राणेश वाटिका से मधुकर तुम्हें मिलेगा गीत सुनाता नित नित नवल नवल निर्झर शरद शिशिर हेमन्त वसन्ती ऋतु रवि शशि में हो द्युतिमय टेर रहा है विराटवपुशीला मुरली तेरा मुरलीधर।।104।।
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आज़ादी की होली पहन वसन्ती चोला निकली मस्तानो की टोली आजादी की खातिर खेली दिवानों ने होली आज सजा है सर पे उनके बलिदानो का सेहरा चाँद सितारों से मिलता है नादानों का चेहरा आँख में आँसू...
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आज़ादी की होली पहन वसन्ती चोला निकली मस्तानो की टोली आजादी की खातिर खेली दिवानों ने होली आज सजा है सर पे उनके बलिदानो का सेहरा चाँद सितारों से मिलता है नादानों का चेहरा आँख में आँसू
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मैं तो पतझड़ था फिर क्यूँ निमन्त्रण दिया ऋतु वसन्ती को तन पर लपेटे हुए आस मन में लिए प्यास मन में लिए कब शरद आयी पल्लू लपेटे हुए तुमने फेरी निगाहें अन्धेरा हुआ ऐसा लगता है सूरज उगेगा नहीं …
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वसंत ऋतु में प्रकृति के सौंदर्य को बताने के लिए ' निराला ' ने एक ओर तो वासन्ती वसन तथा वासन्ती सुमन का प्रयोग किया है और दूसरी ओर-“ फूटे रंग वसन्ती ”-और-“ यह वायु वसन्ती आई है ”
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वसंत ऋतु में प्रकृति के सौंदर्य को बताने के लिए ' निराला ' ने एक ओर तो वासन्ती वसन तथा वासन्ती सुमन का प्रयोग किया है और दूसरी ओर-“ फूटे रंग वसन्ती ”-और-“ यह वायु वसन्ती आई है ”
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मैं तो पतझड़ था फिर क्यूँ निमन्त्रण दिया ऋतु वसन्ती को तन पर लपेटे हुए आस मन में लिए प्यास मन में लिए कब शरद आयी पल्लू लपेटे हुए तुमने फेरी निगाहें अन्धेरा हुआ ऐसा लगता है सूरज उगेगा नहीं रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा..
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बूढी साबो बहुत दिनों बाद बेटे को देख कुछ पल के लिये सारे ताने-उलाहने भूल गई और हुलसकर पानी का लोटा भर कर ला रही थी कि वसन्ती ने लोटा छीन कर एक तरफ रख दिया और सास पर बरस पडी-लाड बाद में दिखाती रहना अम्मा ।..