उपभोक्ता कीमत सूचकांक को कसौटी बना कर विचार करें तो अनिवार्य खाद्य पदार्थों की कीमतों में 10-12 प्रतिशत की वृद्धि हुई जिसके परिणामस्वरूप वेतन प्राप्त करने वाले मध्यवर्ग की वास्तविक आय कम हुई और कामगारों की वास्तविक मजदूरी में भी कमी हुई है।
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उपभोक्ता कीमत सूचकांक को कसौटी बना कर विचार करें तो अनिवार्य खाद्य पदार्थों की कीमतों में 10-12 प्रतिशत की वृद्धि हुई जिसके परिणामस्वरूप वेतन प्राप्त करने वाले मध्यवर्ग की वास्तविक आय कम हुई और कामगारों की वास्तविक मजदूरी में भी कमी हुई है।
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सरकार की विभिन्न उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि संप्रग के सत्ता में आने के बाद से पहले के मुकाबले गरीबी तेजी से घट रही है, वास्तविक मजदूरी बढ़ रही है, कृषि वृद्धि तेज हुई है तथा आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित की गयी है।
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93. मेरे पहले बजट घोषणा के अनुसरण में एक वास्तविक मजदूरी प्रदान करने के लिए का ` प्रति दिन 100, सूचकांक करने के लिए सरकार का फैसला किया है अधिसूचित मजदूरी दर MGNREGA तहत कृषि श्रम के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के लि ए.
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“अनैच्छिक बेरोजगारी” की परिभाषा करते हुए उन्होंने लिखा है-“जब कोई व्यक्ति प्रचलित वास्तविक मजदूरी से कम वास्तविक मजदूरी पर कार्य करने के लिए तैयार हो जाता है, चाहे वह कम नकद मजदूरी स्वीकार करने के लिए तैयार न हो, तब इस अवस्था को अनैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं।”
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“अनैच्छिक बेरोजगारी” की परिभाषा करते हुए उन्होंने लिखा है-“जब कोई व्यक्ति प्रचलित वास्तविक मजदूरी से कम वास्तविक मजदूरी पर कार्य करने के लिए तैयार हो जाता है, चाहे वह कम नकद मजदूरी स्वीकार करने के लिए तैयार न हो, तब इस अवस्था को अनैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं।”
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“अनैच्छिक बेरोजगारी” की परिभाषा करते हुए उन्होंने लिखा है-“जब कोई व्यक्ति प्रचलित वास्तविक मजदूरी से कम वास्तविक मजदूरी पर कार्य करने के लिए तैयार हो जाता है, चाहे वह कम नकद मजदूरी स्वीकार करने के लिए तैयार न हो, तब इस अवस्था को अनैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं।”
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“अनैच्छिक बेरोजगारी” की परिभाषा करते हुए उन्होंने लिखा है-“जब कोई व्यक्ति प्रचलित वास्तविक मजदूरी से कम वास्तविक मजदूरी पर कार्य करने के लिए तैयार हो जाता है, चाहे वह कम नकद मजदूरी स्वीकार करने के लिए तैयार न हो, तब इस अवस्था को अनैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं।”
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मजदूरों से ठेका और ट्रेनी के तौर पर अमानवीय तरीकों और शर्तों पर काम कराने और नियमित मजदूरों की वास्तविक मजदूरी में कमी करने और यूनियन बनाने के नियम कानूनों की पेचीदगी और उसकी रुकावट से एक विस्फोटक हालात तैयार होता है जिसे परंपरागत या दलाल बन चुकी यूनियनें सारी कोशिशों के बावजूद रोकने में असफल साबित होती हैं.