इंदौर से ही दिनेश अहिरवार के अनुसार-' पश्चिम की जीवन और विचार शैली से प्रभावित होकर हम कई बेसिर-पैर के निर्णय कर रहे हैं जो हमारी सेहत (संस्कृति) के लिए ठीक नहीं है।
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इसलिए भाग्य का लेखा-जोखा कपाल में लिखा रहता है, जैसी भाषा का प्रयोग पुरातन ग्रंथ से करते हुए भी तथ्य यही प्रकट होता है कि कर्तृत्व अनायास ही नहीं बन पड़ता, उसकी पृष्ठभूमि विचार शैली के अनुसार धीरे-धीरे मुद्दतों में बन पाती है ।
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समय पर पहुंचना का ढोंग रचना / दिखावा करना अस्वाभाविक व्यवहार अस्वाभाविक व्यवहार समय पर पहुंचना दीखावा करना बन्ना कम्ना बनना[बनाना] विचार शैली चित्र के लिए खडा रहना या बैठना निर्माण करना करना विचार शैली सोचनाना निर्माण करना करना खड़ा होना चल पड्ॅअना बनना पहुंचना बहाना करना
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समय पर पहुंचना का ढोंग रचना / दिखावा करना अस्वाभाविक व्यवहार अस्वाभाविक व्यवहार समय पर पहुंचना दीखावा करना बन्ना कम्ना बनना[बनाना] विचार शैली चित्र के लिए खडा रहना या बैठना निर्माण करना करना विचार शैली सोचनाना निर्माण करना करना खड़ा होना चल पड्ॅअना बनना पहुंचना बहाना करना
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इसलिए भाग्य का लेखा-जोखा कपाल में लिखा रहता है, जैसी भाषा का प्रयोग पुरातन ग्रंथ से करते हुए भी तथ्य यही प्रकट होता है कि कर्तृत्व अनायास ही नहीं बन पड़ता, उसकी पृष्ठभूमि विचार शैली के अनुसार धीरे-धीरे मुद्दतों में बन पाती है ।
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ऐसी खोज का महत्व काशी के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, सारी भारतीय संस्कृति के लिए भी है क्योंकि उत्तर वैदिक काल से ही कला, शिक्षा और स्वतंत्र विचार शैली के लिए सारे भारतवर्ष में प्रसिद्ध रही है और इसका प्रभाव भारतीय इतिहास की अविच्छिन्न धारा पर बराबर पड़ता रहा है।
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आज की स्थिति में सबसे बड़ा शौर्य, साहस, पराक्रम और पुरुषार्थ यह है कि हम पूरा मनोबल इकट्ठा करके अपनी और अपने सगे संबंधित व्यक्तियों की विचार शैली में ऐसा प्रखर परिवर्तन प्रस्तुत करें, जिसमें विवेक की प्रतिष्ठापना हो और अविवेकपूर्ण दुर्भावनाओं एवं दुष्प्रवृत्तियों को पैरों तले कुचल कर रख दिया जाए।
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हम कैसे हैं और हमारा भविष्य कैसा होगा, यह सब विचार शैली पर निर्भर करता है, विचारों में अपार शक्ति होती है, वे हमेशा कर्म करने की प्रेरणा देते हैं, विचार शक्ति यदि अच्छे कार्यों में लगा दी जाय तो अच्छे और यदि बुरे कार्यों में लगा दी जाय तो बुरे परिणाम प्राप्त होते हैं ।
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“ब्लोग-लेखन” भी हर इन्सान की सूझ बूझ, विचार शैली को लँबे अँतराल तक, समेटे, भविष्यमेँ कई सँभावनाएँ सँजोये, कुछ कहता हुआ, कुछ अपने लिये, कुछ किसी अन्य के लिये एक सत्य सा रखता हुआ, वैसा ही प्रामाणिक दस्तावेज बन पाये ये लिखनेवाले पर या तो 'सच्ची बातोँ ” पर निर्भर होगा जो स्वयँ ही अपना आपा ढूँढेगा, बनायेगा या खो देगा!
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भारतीय विचार शैली में इस तरह के मज़ाक ज़्यादा पसंद नहीं किए जाने के पीछे का कारण कुछ समाजशास्त्रियों के अनुसार हमें देर से मिली आज़ादी है और कुछ के मुताबिक हमारे sense of humor में इस तरह के मजाकों को गंभीरता से न लिया जाना है, जिसकी वजह से spoof और parody को हमेशा क्रियेटिविटी न मान कर किसी established विषय का माखौल बनाना समझा गया.