केवल विज्ञान ही किसी फिनोमिना की व्याख्या कर सकता है बूझ सकता है हर शह को यह एक किस्म का विज्ञानवाद ही कहलाएगा.
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डार्विन का विज्ञानवाद भी शारीरिक या बौद्धिक क्षमता की बजाय परिस्थिति सापेक्षता की समझ रखने वाले को सर्वाधिक आयुष्यमान होने का पात्र मानता है।
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एम् चाहती थी न मायावती को, एक धर्मवाद चलता है दूसरा जातिवाद जबकि मेरे देश को विज्ञानवाद चाहिए, विकासवाद चाहिए खै र...
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विज्ञानवाद के अनुसार बाह्यार्थ से शून्यता या ग्राह्य-ग्राहकद्वय से शून्यता धर्मनैरात्म्य है तथा स्वातन्त्रिक माध्यमिकों के अनुसार धर्मों की परमार्थत: नि: स्वभावता धर्मनैरात्म्य है।
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विज्ञानवाद की स्थापना या विज्ञप्तिमात्रता सिद्ध करने में भी यद्यपि दोनों के युक्तियों में भेद है, तथापि यह शैलीगत भेद है, मान्यताओं में नहीं।
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इन तीन सिद्धांतों पर आगे चलकर थेरवाद, वैभाषिक, सौत्रान्त्रिक, माध्यमिक (शून्यवाद), योगाचार (विज्ञानवाद) और स्वतंत्र योगाचार का दर्शन गढ़ा गया।
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पश्चिम जिस भौतिकवाद, विज्ञानवाद और मानववाद तक 16 वीं शताब्दी में पहुंचा, वहां तक भारत अब से ढाई हजार साल से पहले ही पहुंच चुका था।
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योगाचार का विज्ञानवाद कहता है कि ईश्वर नहीं है, आत्मा भी नहीं है और यह जो दिखाई देने वाला जगत है वह बुद्धि द्वारा उत्पन्न भ्रम का जाल है।
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== पदार्थमीमांसा == * विज्ञानवाद के अनुसार प्रमेयों को हम तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं, यथा-# परिकल्पित लक्षण, # परतन्त्र लक्षण तथा # परिनिष्पन्न लक्षण।
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शून्यवाद या शून्यता बौद्धों की महायान शाखा माध्यमिक नामक विभाग का मत या सिद्धान्त है जिसमें संसार को शून्य और उसके सब पदार्थों को सत्ताहीन माना जाता है (विज्ञानवाद से भिन्न)।