कहानी के पर्यायवाची के रूप में इतिहास शब्द का प्रयोग बौद्धों केद्वारा रोका गया अतः साहित्यिक विज्ञानवेत्ता क्षम्य हो सकते हैं यदि उन्होंनेइस प्राचीन शब्द का प्रयोग किया क्योंकि इसका अर्थ कोई कहानी नहीं था वरन्इतिहास था.
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आज तक विश्व में जो महत्वपूर्ण आश्चर्यचकित कर देने वाले कार्य हुए हैं, जो कुछ उत्कृष्ट कार्य हो रहा है, वह मनुष्य के उस दिव्य गुण का ही चमत्कार है, जिसे मनोवैज्ञानिक और विज्ञानवेत्ता विचार कहते हैं।
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डा. काल्विन विल्सन नाम के एक विज्ञानवेत्ता ने भी अपने शोध के दौरान यही पाया कि जिस रसायनिक प्रक्रिया से मनुष्य की चेतना जागृत होती है, वह पीपल, वट, पाकड, बरगद आदि वृक्षों में बहुतायत में पाया जाता है.
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प्राचीन काल में सूक्ष्म ऊतक विज्ञानवेत्ता अभिनव (Fresh) वस्तुओं की परीक्षा के लिए उन्हें सूचीवेधन (Teased) कर या हाथों द्वारा ही तराशकर, खुरचकर या उसे फैलाकर (Smear) यथासंभव पतला बना डालते थे, जिससे उन्हें पारगत प्रकाश (Transmitted light) द्वारा सूक्ष्मदर्शी से देखा जा सके।
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सभी सगुण उपासक, निर्गुण उपासक, विज्ञानवेत्ता, यहाँ तक कि नास्तिक भी यह स्वीकार करते हैं कि कोई तो परम शक्ति इस ब्रह्माण्ड में विद्यमान है, जो और कुछ करे न करे, हमारा यह नश्वर शरीर चला ही रही है।
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प्रस्तुत तथ्यों पर गंभीरतापूर्वक विचार कर सकने में समर्थ राजनेता, अर्थशास्त्री, समाज विज्ञानी, विज्ञानवेत्ता, अपनी-अपनी कसौटी पर कसकर एक स्तर से यही कहते पाये जाते हैं कि मनुष्य सामूहिक आत्महत्या की राह पर बदहवास होकर सरपट दौड़ता चला जा रहा है।
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आप देखें, बड़े से बड़े विज्ञानवेत्ता इस पर विचार करें, दार्शनिक लोग विचार करें, साहित्यिक लोग विचार करें, और यह सोचें कि जब आप थोड़ी देर के लिये श्रम-रहित होते हैं, शान्त होते हैं, तब आप अपने में क्या पाते हैं?
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प्रत्यक्ष रूप से उसने यह बहाना किया कि उसके शत्रु उस विज्ञानवेत्ता को कलिंग ने अपने यहाँ शरण दे रखी है और कि कलिंग नरेश को एक पर एक कई वार्निंग दी जा चुकी है कि वह तुरन्त उस वैज्ञानिक का वीजा निरस्त करें और प्रत्यर्पण सन्धि के तहत उसे पकडक़र राजा के हवाले कर दें.
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अधिकांश भारतीय विज्ञानवेत्ता इस तथ्य को अब स्वीकार करते हैं कि शून्य की उत्पत्ति भारतीय ऋषि गृप्समद की उर्वर मेधा का परिणाम है तथा सूर्य चन्द्रमा का एवं पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमने के सिद्धान्त को भारतीय ऋषि एवं वैज्ञानिक आर्यभट्ट प्रथम ने ईसा की पांचवी सदी में अपनी आयु के 23 वें वर्ष में ही, यूरोपीय वैज्ञानिक कोर्पनिक्स, से करीब हजार वर्षों पूर्व सिद्ध कर दिया था।
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अधिकांश भारतीय विज्ञानवेत्ता इस तथ्य को अब स्वीकार करते हैं कि शून्य की उत्पत्ति भारतीय ऋषि गृप्समद की उर्वर मेधा का परिणाम है तथा सूर्य चन्द्रमा का एवं पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमने के सिद्धान्त को भारतीय ऋषि एवं वैज्ञानिक आर्यभट्ट प्रथम ने ईसा की पांचवी सदी में अपनी आयु के 23 वें वर्ष में ही, यूरोपीय वैज्ञानिक कोर्पनिक्स, से करीब हजार वर्षों पूर्व सिद्ध कर दिया था।