गुण (बुद्धि) में-अर्थ प्रमाण (अनुमान), संशय, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, छल और जाति को अन्तर्भूत किया जा सकता है।
42.
नैयायिकों ने छलादि का प्रयोग सही माना है, परन्तु अकलंक के अनुसार छल का प्रयोग उचित नहीं, क्योंकि छलादि से उत्पन्न जल्प, वितण्डा आदि के अस्तित्व में वे विश्वास नहीं करते।
43.
लेकिन राजनीतिक स्वार्थ के चलते इस पर विपक्षी पार्टियों के अलावा सरकार के कुछ सहयोगी दल भी राजनीतिक वितण्डा खड़ा कर रहे हैं जो कि नैतिक, राजनीतिक एवं आर्थिक दृष्टि से अस्वीकार्य है।
44.
जल्प और वितण्डा कथाओं में प्रतिवादी यदि अवसर पर किसी कारण से सदुत्तर नहीं दे पाता है, तो पराजय के भय से चुप न रहकर असदुत्तर कहने के लिए भी कभी विवश हो जाता है।
45.
जल्प और वितण्डा कथाओं में जो उत्तर प्रतिवादी के अपने उत्तर की भी हानि कर सकता है अर्थात जो समान रूप से दोनों पक्षों की हानि कर सकता है वह ' जाति ' या ' जात्युत्तर ' है।
46.
आज भी समाज में धर्म के नाम पर वितण्डा फैलाने वाले रावणों, राजनीति के नाम पर राष्ट्र का शोषण करने वाले जरासंधों, कंसों, दुर्योधनों तथा राष्ट्र की अस्मिता का अपहरण करने वाले दु: शासनों की बाढ़ है।
47.
उद्योतकर ने अपने न्यायवार्तिक में बौद्धों की प्रखर आलोचना की, लेकिन उसमें ज़्यादातर वितण्डा की झलक मिलती है, क्योंकि बौद्ध तर्क शास्त्र को जवाब देने के लिए नैयायिकों का तर्क शास्त्र उस समय उतना सामर्थ्य तथा सुघटित नहीं था।
48.
एक-एक बात पर तार्किकता और प्रमाणिकता के साथ मैं आपसे वाद करने के लिए तैयार हूँ यदि आप सिद्धांत-विरुद्ध और वितण्डा न करें तो क्योंकि तर्कपूर्ण तथ्य-परक बातें करने से ही सत्य निकल कर आता है अन्यथा समय-व्यर्थ ही करना है.
49.
गौतम कहते हैं कि जिस प्रकार बगीचे को पशुओं से तथा चोरों से बचाने के लिए उसकी सीमाओं पर कांटें बिखेरने पड़ते हैं, उसी प्रकार अल्प, वितण्डा आदि वाद प्रकारों का बुरे होते हुए भी तत्वनिश्चय का रक्षण करने के लिए इस्तेमाल करना पड़ता है।
50.
पाश्चात्त्य विद्वान् ने इसका नाम वादशास्त्र रक्खा है, क्योंकि यहाँ वाद, जल्प तथा वितण्डा आदि का विचार अर्थात शास्त्रार्थ की परिपाटी न्यायसूत्र में ही आरम्भ हो गया था और उसका पल्लवन उदयनाचार्य के न्यायपरिशिष्ट तथा शंकर मिश्र के वादिविनोद आदि में देखा जाता है।