सूक्ष्मदर्शी का कुल आवर्धन दोनों लेंसों के आवर्धन के गुणनफल के बराबर होता है| वस्तुनिष्ठ लेंस प्रायः ५, १०, २०, ५० तथा १०० गुणा आवर्धन के होते हैं जबकि नेत्रिका ५ व १० गुणा आवर्धन के साथ आती है| अर्थात् संयुक्त प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी से अधिकतम १००० गुणा आवर्धन प्राप्त हो सकता है| मानवीय नेत्रों की विभेदन क्षमता (
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वस्तुनिष्ठ लेंस प्रायः ५, १ ०, २ ०, ५ ० तथा १ ०० गुणा आवर्धन के होते हैं जबकि नेत्रिका ५ व १ ० गुणा आवर्धन के साथ आती है | अर्थात् संयुक्त प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी से अधिकतम १ ००० गुणा आवर्धन प्राप्त हो सकता है | मानवीय नेत्रों की विभेदन क्षमता (resolving power / resolution) करीब ०.
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करीब ०. २ मिलीमीटर होती है अर्थात् हम न्यूनतम ०.२ मिलीमीटर की दूरी पर स्थित वस्तुओं में भेद कर सकते हैं| अतः संयुक्त प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी से १००० गुणा आवर्धन के पश्चात् ०.२ माइक्रॉन (या २०० नैनोमीटर) की विभेदन क्षमता सम्भव है| इस सूक्ष्मदर्शी का आविष्कार सर्वप्रथम रॉबर्ट हुक ने १६६५ में किया था| उस समय की अपेक्षा आधुनिक सूक्ष्मदर्शी की संरचना काफ़ी जटिल होती है;
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तरीका है अतः इसका प्रयोग बहुत से जैविक नमूनों के अध्ययन में किया जाता है| इसकी विभेदन क्षमता अन्य किसी भी सूक्ष्मदर्शी से कहीं अधिक होती है| इसके माध्यम से अणुओं को देख पाना भी सम्भव है| जैसा कि मैंने सूक्ष्मदर्शियों के बारे में अपने पहले लेख में बताया कि यह लगभग उसी तरह से काम करता है जिस प्रकार एक नेत्रहीन व्यक्ति किसी वस्तु के आकार का अनुमान लगता है|
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के अनुसार किसी भी सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता उसमें प्रयुक्त प्रकाश की तरंग दैर्ध्य के आधे से अधिक नहीं हो सकती| अतः २०० नैनोमीटर संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की मूलभूत सीमा है| यद्यपि पिछले पाँच दशकों में कई नए प्रकार के प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शियों का विकास किया गया है जिनके द्वारा अब ५० नैनोमीटर से भी कम देख पाना सम्भव है तथा प्रतिबिम्ब गुणवत्ता में भी काफ़ी सुधार हुआ है| इनमें से संनाभि सूक्ष्मदर्शी (