व्याकरण सीखने वाले विधार्थियो के लिए यह कविता उपयुक्त है, कविता में से उन्हें १ ०-१ ० विशेषण और विशेष्य चुनने को कहा जाये तो उन्होंने २ ०-२ ० चुन देने है:-)
42.
जहाँ पर क्रिया को विशेष रूप से प्रकाशित करने या महत्व देने के लिए साभिप्राय विशेष्य या नाम का कथन किया जाता है वहाँ परिकरान्कुर अलंकार होता है. रचनाकार परिचय:-आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा, बी.ई., एम.आई.ई.,
43.
जहाँ पर क्रिया को विशेष रूप से प्रकाशित करने या महत्व देने के लिए साभिप्राय विशेष्य या नाम का कथन किया जाता है वहाँ परिकरान्कुर अलंकार होता है. रचनाकार परिचय:-आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा, बी.ई., एम.आई.ई.,...
44.
‘ उपनिषद् ' शब्द की व्युत्पत्ति ‘ सद् ' धातु से मानते हैं, जिसका अर्थ है मुक्त करना, पहँचना या नष्ट करना. यह एक विशेष्य है जिसमें ‘ उप ' और ‘ नि ' उपसर्ग और क्विप् प्रत्यय लगे हैं.
45.
जब विशेष प्रयोजन से विशेषण के द्वारा विशेष्य का कथन किया जाता है तो उसे ' परिकर अलंकार ' कहा जाता है | उदाहरण: १. सोच हिमालय के अधिवासी! यह लज्जा की बात हाय | अपने ताप तपे तापों से, तू न तनिक भी शांति पाय ||
46.
विशेषण विशेष्य के बीच विभक्तियों का समानाधिकरण अपभ्रंश काल में कृदंत विशेषणों से बहुत कुछ उठ चुका था, पर प्राकृत की परंपरा के अनुसार अपभ्रंश की कविताओं में कृदंत विशेषणों में मिलता है जैसे ' जुब्बण गयुं न झूरि ' गए को यौवन को न झूर गए यौवन को न पछता।
47.
नियम हैकि संज्ञा और सर्वनाम पद की आवश्यकता के अनुसार विभिन्न कारकों और वचनों मेंप्रयुक्त होंगे, विशेषणपद विशेष्य के पहले उसके लिंग का अनुसरण करेंगे, क्रियापद कर्तापद के वचन, लिंग और पुरुष का अनुसरणकरते हुए अपेक्षित काल में प्रयुक्त होंगे और अव्यय पद बिना लिंग आदि का अनुसरणकिए विशेषण की भाँति अपने सम्बन्धित पद के पहले आएँगे।
48.
' भूतल पर जल नहीं है ', इस प्रतीति में घटाभाव से विशिष्ट भितल का ग्रहण होता है इसमें घटाभाव विशेषण है, भूसल विशेष्य है तथा इन दोनों के बीच का संबंध वशिष्ट्य इग्र् यथार्थ प्रतीति में गृहीत इस सम्बन्ध को यदि वस्तुत: नहीं माना जाता तो समवाय सम्बन्ध को वरतुसत् मानने के लिए भी कोई आधार न रह जायेगा।
49.
नियम है कि संज्ञा और सर्वनाम पद की आवश्यकता के अनुसार विभिन्न कारकों और वचनों में प्रयुक्त होंगे, विशेषण पद विशेष्य के पहले उसके लिंग का अनुसरण करेंगे, क्रियापद कर्तापद के वचन, लिंग और पुरुष का अनुसरण करते हुए अपेक्षित काल में प्रयुक्त होंगे और अव्यय पद बिना लिंग आदि का अनुसरण किए विशेषण की भाँति अपने सम्बन्धित पद के पहले आएँगे।
50.
यथा द्विकम पचाश, पांच कम शौ ७-केवालात्मक निश्चय संख्या वाचक विशेषण केव्लात्मक विशेषण दो प्रकार के होते हैं रूपांतर युक्त-एकोलो, एकाला, एकली रूपांतर मुक्त-इन विशेषणों के साथ-ऐ प्रत्यय जुड़ा होता है पर समूह बोधक से भिन्न भी है जैसे-एक्कै (केवल एक), द्विय्ये (केवल दो), तिन्नैं विशेषण रूप सारिणी चूँकि विशेषणों के लिंग बोधक पर प्रत्यय विशेष्य के लिंग बोधक पर प्रत्ययों के अनुसार रुपतारिंत होते हैं इसलिए रूपांतरणो पर वाक्य स्तर पर विचार किया जाता है.