5. विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में जो पति-पत्नी बच्चों को अपने साथ या पास रखेगा.
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5. विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में जो पति-पत्नी बच्चों को अपने साथ या पास रखेगा.
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ज्यादातर धर्मगुरु भी अब परस्पर रजामंदी से तलाक (विशेष विवाह अधिनियम 1974 की तरह) सुविधा समाज को मिले, यह चाहते हैं ।
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मप्र शासन के निर्देशानुसार विशेष विवाह अधिनियम (1954-क) की धारा 4 से 14 के साथ सहपठित धारा द्वारा प्रदत्त विशेष विवाह पंजीयन होना अनिवार्य है।
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ज्यादातर धर्मगुरु भी अब परस्पर रजामंदी से तलाक (विशेष विवाह अधिनियम 1974 की तरह) सुविधा समाज को मिले, यह चाहते हैं ।
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2. क्या इसके प्रावधान हर राज्य में अलग-अलग हैं? 3. विशेष विवाह अधिनियम व आर्य समाज विवाह अधिनियम में कानूनी लिहाज से क्या फर्क है?
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भारत में तलाक और दुबारा विवाह को कानून की मंज़ूरी हिंदू विवाह अधिनियम 1955 और विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत मिली हुई है.
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इसके बाद क़ानून मंत्रालय ने इसके लिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955 और विशेष विवाह अधिनियम 1954 में संशोधन का प्रस्ताव सरकार के समक्ष रखा था.
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उल्लेखनीय है कि इस समय एडीएम कार्यालय में मप्र हिन्दु विवाह रजिस्ट्रीकरण नियम 1984 व विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत ही विवाह पंजीयन किए जाते हैं।
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यदि दोनों ही अपना धर्म परिवर्तित नहीं करना चाहते हों और अपने-अपने धर्म में बने रहना चाहते हों तो उन्हें विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह करना चाहिए।