आज की दुनिया को एक व्यापक विश्व-दृष्टि से देखना और वैश्विक परिस्थिति के सन्दर्भ में अपनी राष्ट्रीय परिस्थिति को समझना आज के प्रत्येक साहित्यकार के लिए आवश्यक है।
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आज की दुनिया को एक व्यापक विश्व-दृष्टि से देखना और वैश्विक परिस्थिति के सन्दर्भ में अपनी राष्ट्रीय परिस्थिति को समझना आज के प्रत्येक साहित्यकार के लिए आवश्यक है।
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हमें विज्ञान को अपनी संस्कृति के अविच्छिन्न अवयव के रूप में समझना चाहिए, जिससे हमारी विश्व-दृष्टि का निर्माण होता है और जो हमारे आचरण को प्रभावित करता है।
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फिर भी हमारी सांस्कृतिक जड़ें समान हैं अर्थात् हमारा मौलिक मन समान है, जीवन-दृष्टि और विश्व-दृष्टि एक साझा निजीपन है, जो नस्ल, धर्म, जीवन-शैली और भूगोल से ऊपर है।
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यह उसकी विश्व-दृष्टि ही है कि वो जानता है उसने जिनके पक्ष में खड़ा होना तय किया है उनका वाजिब साथ देना भी कईयों को अपना दुश्मन बना लेना है।
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आदिम समाजों की भी एक विश्व-दृष्टि होती है भले ही उनके पितरों, जादूगरों और पेड़-पौधों में ‘ माना ' आदि की अवधारणाएँ हमारे विज्ञानवादी युग में कुछ अजूबा लगें।
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तो यह परिणति थी, खुद को कभी समाज-परिवर्तन की विश्व-दृष्टि से जुड़ा समझने वाले सुरेंद्र प्रताप की (वह किसी मिशन या काम के लिए समर्पित पत्रकार नहीं था।
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यह उसकी विश्व-दृष्टि ही है कि वो जानता है उसने जिनके पक्ष में खड़ा होना तय किया है उनका वाजिब साथ देना भी कईयों को अपना दुश्मन बना लेना है।
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मगर इसके लिए हमें आज की दुनिया को एक व्यापक विश्व-दृष्टि से देखना होगा और भूमंडलीय यथार्थ के संदर्भ में अपने देश के यथार्थ को अपनी रचनाओं में चित्रित करना होगा।
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मगर इसके लिए हमें आज की दुनिया को एक व्यापक विश्व-दृष्टि से देखना होगा और भूमंडलीय यथार्थ के संदर्भ में अपने देश के यथार्थ को अपनी रचनाओं में चित्रित करना होगा।