हरताल तथा हल्दी के चूर्ण को धतूरे के रस में मिलाकर उससे षटकोण में ींीं बीज और शत्रु के नाम के साथ स्तम्भय लिखें, फिर मंत्र के शेष अक्षरों से वेष्टित कर भूपुर का निर्माण करें।
42.
जैसे अपने सजातीयों के झुण्ड से बिछुड़ा हुआ एवं बन्धन में पड़ा हुआ मृग सुख को प्राप्त नहीं होता, वैसे ही सब प्रकार से शून्य (मिथ्या) नित्य दुराशारूप रज्जु से वेष्टित मन कभी सुख को प्राप्त नहीं होता।।
43.
आपकी भत्तिफ में निरन्तर दत्तचित मैं भत्तिफरूपी गुण-सूत्रा से वेष्टित, हर्षरूप अमृत से परिपूर्ण स्वच्छ, मनरूपी कलश में आपके चरणरूपी पल्लवों तथा ज्ञानरूपी श्रीपफल को रखकर सत्त्वगुणजन्य स्वच्छता रूपी मन्त्राों का उच्चारण करता हुआ, अपने शरीर रूपी गृह को पवित्रा करता हूँ।
44.
उसके उस उद्भासित प्राण ने मेरी उस दिन की सारी सूर्य-किरणों को सजीव कर दिया ; मुझे लगा, मुझे जिस प्रकृति ने अपने आकाश से वेष्टित कर रखा है वह उस तरुणी के ही अक्लांत, अम्लान प्राणों का विश्व-व्यापी विस्तार है।
45.
पूज्य मुनि जी, साररहित तथा छिद्रयुक्त, मांस, नसें (स्नायु) और हड्डियों से वेष्टित और बाहर निकलने (मुक्त होने) के उपायभूत उपदेश (शब्द) से विरहित इस शरीररूपी नगाड़े में मैं बिल्ली की तरह रहता हूँ।।
46.
अत: गुरू के समान उसे स्वच्छ रेशमी वस्त्रों में वेष्टित करके चांदनी के नीचे किसी ऊँची गद्दी पर 'पधराया' जाता है, उसपर चंवर ढलते हैं, पुष्पादि चढ़ाते हैं, उसकी आरती उतारते हैं तथा उसके सामने नहा धोकर जाते और श्रद्धापूर्वक प्रणाम करते हैं।
47.
इन पद्यों का यह अर्थ है, '' जिस स्वर्ग में ऐरावतारूढ़ वज्रहस्त प्रतापवान् देव सेवा से आद्रित इन्द्र शोभायमान हैं, उसी के दक्षिण यमपुरी है, जहाँ चित्रगुप्त अग्रणी, अपने भटों से वेष्टित शक्तिमान सूर्य तनय महान् यमराज का निवास है।
48.
जाने भी दो पास उस क्षयी रामचन्द्र के दिशा-बन्धुओं को, काली साड़ियां तिमिर की-पहिन-पहिन कर, होने भी दो अनुभूति वेदना की उसको दैन्य-दुःख-दावा-दाह, अशनि-निपात की, शेष हुये निज बन्धु शेष के विछोह में वेदना-विनिर्मित विशेष शेष-पाश से वेष्टित हो, उसको भी होने मोहाविष्ट दो।
49.
तमाल वृक्षों की कस्तूरी सुगन्ध निकुंज वन में व्याप्त है, जो पलाश पुष्पों से वेष्टित स्वर्ण आभायुक्त हो रहा है, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कामाग्नि से दहन हृदयों को और विदीर्ण करने के लिए निज नखों को और भी तीव्र एवं विस्तृत कर रहा है।
50.
तमाल वृक्षों की कस्तूरी सुगन्ध निकुंज वन में व्याप्त है, जो पलाश पुष्पों से वेष्टित स्वर्ण आभायुक्त हो रहा है, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कामाग्नि से दहन हृदयों को और विदीर्ण करने के लिए निज नखों को और भी तीव्र एवं विस्तृत कर रहा है।