नये नोटों में इनसेट लेटर में परिवर्तन के छोर में वर्तमान में जारी किये जा रहे नोंट डिजाइन में समान होगें. बैंक द्वारा अब तक जारी किये गये दस रुपये मूल्य वर्ग के सभी नोट वैध मुद्रा बने रहेगें.
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एक लचीला विनिमय दर प्रणाली में सरकारी अंतरराष्ट्रीय आरक्षित परिसंपत्तियां केंद्रीय बैंक को घरेलू मुद्रा खरीदने की अनुमति प्रदान करती हैं, जो केंद्रीय बैंक के लिए एक देयता माना जाता है (चूंकि यह मुद्रा या आईओयूस (IOUs) के रूप में वैध मुद्रा (व्यवस्थापत्र)का मुद्रण (प्रिंट) करता है.
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शायद, आधुनिक युग में लगभग सभी देशों में कागजी मुद्रा, सोने में परिवर्तनीय है, ये वैध मुद्रा है और जैसा कि हमने हायक के प्रस्तावों के संदर्भ में चर्चा की थी, सामान्य पर्चेसिंग पावर की गारंटी ऐसी प्रणाली दे सकती है, जिसमें आधार मुद्रा की कोई जरूरत नहीं होगी।
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अगर बैंकों को ऐसी वैध मुद्रा जारी करने की अनुमति दे दी जाए जिसकी लागत कम हो और बदले में उनको बेशकीमती परिसंपत्तियां दी जाएं, जिससे अच्छी कमाई की संभावना हो, तो अगर उन पर किसी तरह का नियंत्रण न रहा तो बाजार में जरूरत से ज्यादा नोट आ जाएंगे।
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को भूमि के समर्थन के साथ जारी वैध मुद्रा से काबू किया जा सकता था और आज आधुनिक युग में लेटिन अमेरिकी देशों में महंगाई कागजी मुद्रा के चलन के साथ 30 से 40 फीसदी की दर से बढ़ रही है तो आसानी से माना जा सकता है कि प्रो.
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अगर बैंकों को ऐसी वैध मुद्रा जारी करने की अनुमति दे दी जाए जिसकी लागत कम हो और बदले में उनको बेशकीमती परिसंपत्तियां दी जाएं, जिससे अच्छी कमाई की संभावना हो, तो अगर उन पर किसी तरह का नियंत्रण न रहा तो बाजार में जरूरत से ज्यादा नोट आ जाएंगे।
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शायद, आधुनिक युग में लगभग सभी देशों में कागजी मुद्रा, सोने में परिवर्तनीय है, ये वैध मुद्रा है और जैसा कि हमने हायक के प्रस्तावों के संदर्भ में चर्चा की थी, सामान्य पर्चेसिंग पावर की गारंटी ऐसी प्रणाली दे सकती है, जिसमें आधार मुद्रा की कोई जरूरत नहीं होगी।
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क्या हम इस प्रक्रिया को तेज करके मूल्य के लिहाज से गारंटी देने वाली वैध मुद्रा का विकास नहीं कर सकते? ऐसी वैध मुद्रा जिसके लिए सेंट्रल बैंक या मौद्रिक प्राधिकरण की बजाय केवल बाजार की प्रक्रिया ही काफी हो? क्या हम 21 वीं सदी की शुरूआत में ही ऐसी स्थिति में पहुंचने की कल्पना कर सकते हैं?
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क्या हम इस प्रक्रिया को तेज करके मूल्य के लिहाज से गारंटी देने वाली वैध मुद्रा का विकास नहीं कर सकते? ऐसी वैध मुद्रा जिसके लिए सेंट्रल बैंक या मौद्रिक प्राधिकरण की बजाय केवल बाजार की प्रक्रिया ही काफी हो? क्या हम 21 वीं सदी की शुरूआत में ही ऐसी स्थिति में पहुंचने की कल्पना कर सकते हैं?
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अगर जर्मनी की अतिस्फीति (hyper-inflation) (1923-24) को भूमि के समर्थन के साथ जारी वैध मुद्रा से काबू किया जा सकता था और आज आधुनिक युग में लेटिन अमेरिकी देशों में महंगाई कागजी मुद्रा के चलन के साथ 30 से 40 फीसदी की दर से बढ़ रही है तो आसानी से माना जा सकता है कि प्रो.