तथा सभी दिनो के दौरान प्रतिक्रमण कर साल वर्ष में किसी से जाने-अनजाने, बोलने-चलने मे, लेने देने मे, राग-द्वेष में व्यवहार आदि में कोर्इ वैर-भाव बंध गया हो तो मन के मेल को दूर कर मित्र एवं दुश्मन से भी क्षमा मांगेगे तथा स्वयं को भगवान की आराधना में लगायेगें।
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पारामिता कई दिनों से इस बात पर गौर कर रही थी, जितने भी लोग इस कैबिन में आए, आते समय एक आत्मीयता के बंधन में बँधे हुए थे परन्तु इस छोटे-से दसफुट गुणा बारह फुट आकार के घर के आधे भाग में साथ-साथ रहने के कुछ ही दिनों के बाद उनमें एक वैर-भाव जागृत हो जाता था।
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क्या भारत और पाकिस्तान के बीच वैर-भाव को दूर कर स्थायी शांति और सद्भावपूर्ण सहयोग तथा अच्छे पड़ोसी जैसे संबंध स्थापित नहीं हो सकते? क्या हमारे आपसी संबंध अतीत की तरह कटु ही बने रहेंगे? क्या हम अपनी भावी पीढ़ी को बेहतर भविष्य नहीं दे सकते या फिर क्या यह हमारा कर्तव्य नहीं है?
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समाज-बंधुओं को आपसी वैर-भाव भुला कर एकत्रित हो हर अन्याय के विरुद्ध डटकर मुकाबला करने की सीख दी और किसी भी विषम परिस्थिति में अपनी सेवाएँ देने का आश्वासन दिया! प्रदेश की मुख्य-मंत्री द्वारा कोरी समाज की अवहेलना करने के कारण आने वाले 2012 के विधान-सभा चुनाव में हरवाने की अपील की! सभी समाज-बंधुओं ने तालियाँ बजIकर इंजी.
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दो दशक पूर्व हयेक के संपादन में विभिन्न लेखकों द्वारा अध्ययपत्रों की एक श्रृंखला प्रकाशित हुई जिसमें इतिहासकारों के पूंजीवाद विरोधी झुकाव की ओर ध्यान आकर्षित किया गया था और इसे 18वीं व 19वीं शताब्दी में पूंजीवाद के आरंभिक उद्भव-जिसकी कल्पना उस समय के आभिजात वर्ग और बुद्धिजीवियों ने की थी-के प्रति वैर-भाव से जोड़ कर देखा गया।
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पत्नी उसे दुत्कारती रहे, कोई इज्जत ना करे (वैसे ऐसे काम वो कम ही कर पाते है जिनसे उनकी इज्जत आदि में सकारात्मक फर्क पड़ता हो!) फिर भी वो उसके प्रति कोई वैर-भाव मन में नहीं पालते! हर बार वो नकारे जाते है फिर भी वाह सुनने की चाह उनसे एक प्रयास और करवा डालती है!
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दो दशक पूर्व हयेक के संपादन में विभिन्न लेखकों द्वारा अध्ययपत्रों की एक श्रृंखला प्रकाशित हुई जिसमें इतिहासकारों के पूंजीवाद विरोधी झुकाव की ओर ध्यान आकर्षित किया गया था और इसे 18 वीं व 19 वीं शताब्दी में पूंजीवाद के आरंभिक उद्भव-जिसकी कल्पना उस समय के आभिजात वर्ग और बुद्धिजीवियों ने की थी-के प्रति वैर-भाव से जोड़ कर देखा गया।
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सुबह सबेरे काम पे निकले शाम को ही घर आती है डाली-डाली पर चहक-चहक कर माँ-चिडियाँ क्या गाती है लगे रहो अविरल श्रम में मस्त रहो जीवन क्रम में नही किसी से कोई आस हो नही किसी से वैर-भाव हो हर गम, हर दु ; ख से परे रहने का संदेश हमें सुनाती डाली-डाली पर चहक-चहक कर बेटा-चिडियाँ जीना हमैं सिखाती है।
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कवी हृदय पती तो बस एक वाह का मारा होता है! पत्नी उसे दुत्कारती रहे,कोई इज्जत ना करे(वैसे ऐसे काम वो कम ही कर पाते है जिनसे उनकी इज्जत आदि में सकारात्मक फर्क पड़ता हो!) फिर भी वो उसके प्रति कोई वैर-भाव मन में नहीं पालते!हर बार वो नकारे जाते है फिर भी वाह सुनने की चाह उनसे एक प्रयास और करवा डालती है!