आध्ुानिक उदार अर्थव्यवस्था ने जिस तरह मानव जाति का वर्तमान और भविष्य बाजार के हाथों गिरवी रख दिया है, उससे एक ऐसी प्रतियोगितात्मक संस्कृति का विकास हुआ है जो शक्तिमत्ता को ही जीवन की शर्त मानती है।
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मुझमें प्रत्येक व्यक्ति अपनी आत्मा-भर देखता है, बिलकुल यथा-तथा ; बिना किसी भी प्रकार के परिवर्तन या गोपन-चेष्टा के-आत्मा की नग्नता में, निवारणता में बाह्य आडम्बर और दर्प और प्रतिभा और शक्तिमत्ता की हीनता में...
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इसके विपरीत उसमें सरल स्वाभाविक ढंग से, सफ़ाई के साथ कथा कहने की प्रवृत्ति मिलती है, किन्तु साथ ही उसमें ओजस्विता और शक्तिमत्ता का इतना अदम्य वेग मिलता है, जो पाठक अथवा श्रोता को झकझोर देता है और उसकी सूखी नसों में भी उष्ण रक्त का संचार कर साहस, उमंग और उत्साह से भर देता है।
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जैसा कि मेरी वोल्स्तानक्राफ्ट का भी मानना है ' ' प्रकृति के प्रथम कोमल दोष से एकरेखीय वंशक्रम में, सौन्दर्य की सत्ता को, उत्तराधिकार में प्राप्त कर, उन्हें अपनी शक्तिमत्ता को कायम रखना होता है, उन प्राकृतिक अधिकारों को, तर्कबुद्धि का उपयोग जिसे उपलब्ध करा सकता था, उन्होंने त्याग दिया था और समानता से उपजे आनंद अर्जित करने के उद्यम के बजाय अल्पकालिक रानियाँ बनना अधिक पसंद करती थीं.
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हमारी परतन्त्रता वह प्रमुख कारण है, जिसने उस काल में उत्पन्न इन मनीषियों के अपने ज्ञान और दर्शन का विकास किसी एक ही दिशा में नहीं होने दिया! यदि भारतवर्ष स्वतन्त्र होता तो सम्भव था कि स्वामी विवेकानन्द यौगिक क्रियाओं का अध्ययन, अनुशीलन और प्रचार में ही लगे रहते और उनकी यह विराट शक्तिमत्ता और राष्ट्र-प्रेम और समस्त दर्शन की पुनर्व्याख्या और पश्चिम और पूर्व के विशाल, ज्ञान चिंतन, धर्म और संस्कार की तुलनात्मक विवेचना और उपलब्धि से हम वंचित रह जाते।
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अगर अर्थशास्त्रीय पेचीदगियों को छोड़ भी दिया जाये तो 2006 के बाद जी-20 का अस्तित्व में आना ; भारत, चीन, ब्राजील जैसे विकासशील देशों का लगातार विकसित देशों द्वारा अपनी बढ़ती हुई शक्तिमत्ता का एहसास कराया जाना और इन साम्राज्यवादी देशों के भीतर लगातार तीखे होते हुए वर्ग-अन्तरविरोधों का अभिव्यक्त होना ; क्या यह सब किसी एक साम्राज्यवादी देश की पूरी दुनिया पर एकछत्र चौधराहट पर सवालिया निशान नहीं खड़ा कर रहा है? काऊत्स्की की अति-साम्राज्यवाद की थीसिस पहले भी ग़लत सिद्ध हो चुकी है और एक बार फिर हो रही है।