इन विरोधी मतों का समाधान करते हुए याकोगी (भविस्सयत्त कहा की जर्मन भूमिका, अंग्रेजी अनुवाद, बड़ौदा ओरिएंटल इंस्टीटयूट जर्नल, जून १९५५) ने कहा है कि शब्दसमूह की दृष्टि से अपभ्रंश प्राकृत के निकट है और व्याकरण की दृष्टि से प्राकृत से भिन्न भाषा है।
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ध्वनिपरिर्वान की जिन प्रवृत्त्त्तियो के द्वारा संस्कृत शब्दों के तद्भव रूप प्राकृत में प्रचलित थे, वही प्रवृतियाँ अधिकांशतः अपभ्रंश शब्दसमूह में भी दिखाई पड़ती है, जैसे अनादि और असंयुक्त क,ग,च,ज,त,द,प,य, और व का लोप तथा इनके स्थान पर उद्वृत स्वर अ अथवा य श्रुति का प्रयोग।
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ध्वनिपरिर्वान की जिन प्रवृत्त्त्तियो के द्वारा संस्कृत शब्दों के तद्भव रूप प्राकृत में प्रचलित थे, वही प्रवृतियाँ अधिकांशतः अपभ्रंश शब्दसमूह में भी दिखाई पड़ती है, जैसे अनादि और असंयुक्त क,ग,च,ज,त,द,प,य, और व का लोप तथा इनके स्थान पर उद्वृत स्वर अ अथवा य श्रुति का प्रयोग।
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शब्दसमूह की इस मिश्रित स्थिति के प्रसंग में यह स्पष्ट कर देना उचित होगा कि खासी, बोडो तथा थाई तत्व तो असमिया में उधार लिए गए हैं, पर मलायन और कोलारी तत्वों का मिश्रण इन भाषाओं के मूलाधार के पास्परिक मिश्रण के फलस्वरूप है।
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इन विरोधी मतों का समाधान करते हुए याकोगी (भविस्सयत्त कहा की जर्मन भूमिका, अंग्रेजी अनुवाद, बड़ौदा ओरिएंटल इंस्टीटयूट जर्नल, जून १ ९ ५५) ने कहा है कि शब्दसमूह की दृष्टि से अपभ्रंश प्राकृत के निकट है और व्याकरण की दृष्टि से प्राकृत से भिन्न भाषा है।
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ध्वनिपरिर्वान की जिन प्रवृत्त्िायों के द्वारा संस्कृत शब्दों के तद्भव रूप प्राकृत में प्रचलित थे, वही प्रवृतियाँ अधिकांशतः अपभ्रंश शब्दसमूह में भी दिखाई पड़ती है, जैसे अनादि और असंयुक्त क, ग, च, ज, त, द, प, य, और व का लोप तथा इनके स्थान पर उद्वृत स्वर अ अथवा य श्रुति का प्रयोग।
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जर्मन कवि नाटककार ब्रैख्ट के प्रसिद्ध मुहावरे को याद किया जाय तो ये शब्दसमूह हमें ' बुरी खबर' देने में मदद देते हैं पर कविता की जो टोन पहली पक्ति में स्थापित हो गयी है ('समारोह अभी कहां खत्म हुआ है' या 'अभी भी बज रहा है संगीत') वह बताती है कि कविसिर्फ गुस्से में कुछ बुदबुदाने, बड़बड़ाने या सिर्फ हमला करने नहीं जा रहा है.
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अथवा जो अज्ञात होने के कारण मुमुक्षुओं की जिज्ञासा का विषय है, सम्पूर्ण लोगों को जिसका आत्मरूप से प्रत्यक्ष है, वह ब्रह्म वाचक शब्दसमूह और उससे प्रकाशित होने वाले अर्थसमूह से ' त्रयं वा इदं नाम रूपं कर्म ' (नाम, रूप और कर्म ये तीन) इत्यादि श्रुति में प्रदर्शि द्वैतप्रपंच से अपृथक अपने को देखता हुआ अपने में स्वप्न की नाईं, बन्धन, शोक मोह आदि से दुःखी प्रतीत होता है।