इस क्षेत्र में फ्रांस के शल्यचिकित्सक आंब्राज पारे (1517-90 ई.) के कार्य उल्लेखनीय हैं: परंतु इस काल में शरीर-क्रिया-विज्ञान में विकास न होने से भेषजचिकित्सा उन्नति न कर सकी।
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इस क्षेत्र में फ्रांस के शल्यचिकित्सक आंब्राज पारे (1517-90 ई.) के कार्य उल्लेखनीय हैं: परंतु इस काल में शरीर-क्रिया-विज्ञान में विकास न होने से भेषजचिकित्सा उन्नति न कर सकी।
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चिकित्सा महाविद्यालयों से उत्तिर्ण होने के बाद फिजिशियन या शल्यचिकित्सक इस तरह की विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिये कुछ वर्षों का विशिष्त क्षेत्र में चिकित्सा पाठ्यक्रम का अध्ययन करते हैं।
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चिकित्सा महाविद्यालयों से उत्तिर्ण होने के बाद फिजिशियन या शल्यचिकित्सक इस तरह की विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिये कुछ वर्षों का विशिष्त क्षेत्र में चिकित्सा पाठ्यक्रम का अध्ययन करते हैं।
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शल्यचिकित्सक को एक दमित व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है, जो प्रेम के द्वारा अन्यों को नहीं बदल पाता, इसलिए “उच्च श्रेणी बढ़ईगीरी के काम” का सहारा लेता है.
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शल्यचिकित्सक को एक दमित व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है, जो प्रेम के द्वारा अन्यों को नहीं बदल पाता, इसलिए “उच्च श्रेणी बढ़ईगीरी के काम” का सहारा लेता है.
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वह एक सफ़ल डाक्टर, सफल प्राध्यापक, कलकत्ता के लोकप्रिय मेयर, सफल सांसद, जनता के चहेते मुख्यमंत्री सिद्ध होने के साथ ही अन्त तक एक सफल शल्यचिकित्सक रहे ।
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प्रसिद्ध शल्यचिकित्सक नरेश ट्रेहान कहते हैं-ऑपरेशन के दौरान ॐ की टेप चलाने से डॉक्टर और स्टॉफ में आत्मविश्वास की भावना आती है और रोगी भी सकारात्मक ढंग से सोचने लगता है।
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शरीर-रचना वैज्ञानिक और शल्यचिकित्सक रियल्डो कोलंबो ने 1559 में इस रोग के बारे में जानकारी दी [22] और 1691 में बर्नार्ड कोनोर ने संभवतः ए.एस. से अस्थिपंजर में हुए परिवर्तनों का सर्वप्रथम विवरण दिया.
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शरीर-रचना वैज्ञानिक और शल्यचिकित्सक रियल्डो कोलंबो ने 1559 में इस रोग के बारे में जानकारी दी और 1691 में बर्नार्ड कोनोर ने संभवतः ए. एस. से अस्थिपंजर में हुए परिवर्तनों का सर्वप्रथम विवरण दिया.