जैसे-सुपीरियर रेक्टस के संकुचन के साथ इंफीरियर रेक्टस में शिथिलन होता है, जिससे आँखें ऊपर उठती हैं और इसके ठीक विपरीत जब इंफीरियर रेक्टस संकुचित होती है, तो सुपीरियर रेक्टस में शिथिलन होता है, जिससे आँखें नीचे की ओर गति करती हैं।
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जैसे-सुपीरियर रेक्टस के संकुचन के साथ इंफीरियर रेक्टस में शिथिलन होता है, जिससे आँखें ऊपर उठती हैं और इसके ठीक विपरीत जब इंफीरियर रेक्टस संकुचित होती है, तो सुपीरियर रेक्टस में शिथिलन होता है, जिससे आँखें नीचे की ओर गति करती हैं।
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जैसे ही संवेदी आवेगों की संख्या और बारम्बारता बढ़ती है, प्रेरक आवेग प्रतिवर्त क्रिया के रूप में मूत्राशय की डीट्रसर पेशी (detrusor muscle) का संकुचन तथा आतंरिक संकोचिनी पेशी का शिथिलन कर देते हैं, इससे आतंरिक मूत्रमार्गीय छिद्र खुल जाता है लेकिन बाह्य संकोचिनी पेशी का शिथिल होना अर्थात बाह्य मूत्रमार्गीय छिद्र का खुलना इच्छा पर निर्भर करता है।
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पेशियों की गतियां (Movements of the muscles)-ऊपर दी गई पेशियों की गतियाँ एक-दूसरे से बिल्कुल विपरीत होती हैं अर्थात जब पेशियों का एक सेट संकुचित होता है तो इसके ठीक विपरीत वाली पेशियों का सेट शिथिलन (relaxation) की क्रिया करता है जैसे-‘ सुपीरियर रेक्टस ' के संकुचन के साथ ‘ इन्फीरियर रेक्टस ' में शिथिलन होता है।
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पेशियों की गतियां (Movements of the muscles)-ऊपर दी गई पेशियों की गतियाँ एक-दूसरे से बिल्कुल विपरीत होती हैं अर्थात जब पेशियों का एक सेट संकुचित होता है तो इसके ठीक विपरीत वाली पेशियों का सेट शिथिलन (relaxation) की क्रिया करता है जैसे-‘ सुपीरियर रेक्टस ' के संकुचन के साथ ‘ इन्फीरियर रेक्टस ' में शिथिलन होता है।