नितांत नई जानकारी सुंदर पोस्ट आकर्षक प्रस्तुति के लिए आपका आभार ===================== चन्द्रकुमार इस शिरस्त्राण को हमारे जोधपुर में ' साफा' कहते है.....
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यूनानी-सैनिकों की भांति शिरस्त्राण धारण किए इन निर्जीव सिरों में, असाधारण वैज्ञानिक उन्नति से उत्पन्न यांत्रिकता और संज्ञाहीनता की ओर इशारे हैं।
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इनके सिर का उभार काले या गहरे ग्रे रंग का होता है और शिरस्त्राण इस उभार के वक्रता बुंडू तक फैला होता है.
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इनके सिर का उभार काले या गहरे ग्रे रंग का होता है और शिरस्त्राण इस उभार के वक्रता बुंडू तक फैला होता है.
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चित्र में सटायु का मुख पक्षी का है, शिर परसुंदर शिरस्त्राण है, परंतु उसकी विशाल दीर्घ मनुष्य जैसी भुजाएं हैंजिनमें से पंख उग रहे हैं.
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केश, विन्यास, पगड़ी, शिरस्त्राण आदि भेदों के कारण सिर के बजाय ' हाथ ऊपर ' वाली स्थिति में मापन अधिक सुग्राही होगा।
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अरे वाह, इस बार तो आप दूर-दूर से अनोखे शिरस्त्राण ढूंढ कर लाई हैं. धन्यवाद. कहानी “हत्या की राजनीति” के बारे में आपका सुझाव सर माथे.
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वक्षस्थल पर सुवर्णालंकार, जिसके कांचन के शिरस्त्राण / ब्रज के खिलाफ़ एक अजस्र शिलाखण्ड / भुजाओं में उठाए / अनन्त देव-नक्षत्रों का अकेला आक्रमण झेलता /
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हाँ, असुर योद्धा अपने सिर पर शिरस्त्राण के रूप में सींग अवश्य बाँधते थे, जो उनके लिये एक अतिरिक्त हथियार का काम देते थे.
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उसने नहा-धोकर कोरी लुंगी और मारकीनी शिरस्त्राण उतार कर क्या कुर्ता, पायजामा पहना और मृतात्मा की शांति से जुड़े सारे कर्मकांड, पंडितों के निर्देशानुसार पूरे किए।