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शीत काल उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
41.फ़िर भी यदि कोई अपने छोटे कद से चिन्तित रहता है तो यह योग करके देखें बेहतर यही होगा कि इन आयुर्वेदिक औषधियों को आप शीत काल मे ले क्योकि शीत काल मे धातु अग्नि और जठरा अग्नि दोनो ही प्रबल रहती है।

42.फ़िर भी यदि कोई अपने छोटे कद से चिन्तित रहता है तो यह योग करके देखें बेहतर यही होगा कि इन आयुर्वेदिक औषधियों को आप शीत काल मे ले क्योकि शीत काल मे धातु अग्नि और जठरा अग्नि दोनो ही प्रबल रहती है।

43.मौसमी सैरवसंती कंदों और नीले रंग के घंटीनुमा फूलों वाले वृक्षों (ब्लूबेल वुड) से लेकर पूर्णिमा की रात्रि में ग्रीष्म ऋतु के दृश्य और सुगंधी पतझड़ के रंग, छाल एवं बेरियाँ और शीत काल के हिमकणों, ओस और विच हेज़ल (एक पिंघल वृक्ष) तक:

44.-शीत काल में शरीर को शीत से बिल्कुल अछूता न रखें, क्योंकि थोड़ा शीत का प्रभाव सहना, शरीर एवं स्वास्थ्य के लिए हितकारी होने से जरूरी होता है, लेकिन शीत लहर की तीखी हवा से बचाव करना भी जरूरी होता है।

45.जब मैं एस. एस. पी., बरेली के पद पर नियुक्त था तो शीत काल डकैतों का आतंक बढ़ जाने पर एक बड़े ही नरमपंथी मुख्य मंत्री ने मुझसे कहा था कि दो-चार डकैतों का एनकाउंटर करा दो, अपने आप समस्या हल हो जाएगी।

46.जलवायु >-इसके लिए शीत काल में औषत ठण्डक तथा ग्रीष्म में शुष्क व गर्म वातावरण अच्छा होता है यह एक सीमा तक पाले को सहन कर लेता है गुणवत्ता युक्त फल प्राप्त करने के लिए फलो के बढ़ते और पकते समय लगभग ४. ० डिग्री से.ग्रेड तापमान होना चाहिए ।

47.जलवायु >-इसके लिए शीत काल में औषत ठण्डक तथा ग्रीष्म में शुष्क व गर्म वातावरण अच्छा होता है यह एक सीमा तक पाले को सहन कर लेता है गुणवत्ता युक्त फल प्राप्त करने के लिए फलो के बढ़ते और पकते समय लगभग ४. ० डिग्री से.ग्रेड तापमान होना चाहिए । भूमि:-अनार...

48.सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित यह एक गुफा मन्दिर है, गोपेश्वर से 15 कि 0 मी 0 दूर सीधे खडी चढाई से हिमालय में स्थित है, शीत काल में रुद्रनाथ की मूर्ति डोली से गोपेश्वर में आ जाती है और गर्मी प्रारम्भ होने बद्रीनाथ की तरह कपाट खुलते हैं ।

49.ऐसी मान्न्य्ता है यदि यह प्राणी अपनी गर्म खोह (इलेक्त्रिफ़ाइद b अरो) से बाहर निकलने पर अपनी छाया देख लेता है, जिसे देख कर यह पुनः गायब हो जाता है शीत निद्रा में चला जाता है, तब ऐसा मान लिया जाता है, शीत काल की अवधि ६ हफ्ता और रहेगी.

50.यों तो ऋतु आदि के प्रभाव से दोष संचय काल में संचित हो कर अपने प्रकोप काल में ही कुपित होते हैं, परंतु दोषों के प्रकोपक कारणों की अधिकता, या प्रबलता के कारण तत्काल भी कुपित हो जाते हैं, जिससे जुकाम हो जाता है ; अर्थात नज़ला-जुकाम शीत काल के अतिरिक्त भी हो सकता है।

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