| 41. | श्रमवारि विंदु फल स्वास्थ्य शुचि फलती हूँ
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| 42. | सूतकं मातुरेव स्यादुपस्पृश्य पिता शुचि: ॥ 5 ।
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| 43. | श्वेते वृषे समारुढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि: ।
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| 44. | प्राणों सहित जो देवता मयी, अदिति शुचि निष्पन्न है,
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| 45. | शुचि संध्या यज्ञ रचाएंगे. सुन्दर सुगन्ध फैलायेंगे.
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| 46. | शुचि की व्यंजन विधि-चूरमा पुरालेख-तिथि-अनुसार।-पुरालेख-विषयानुसार।-हिंदी-लिंक।-हमारे-लेखक।-लेखकों से
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| 47. | दे यह शुचि उपहार बनाता अपने लायक नित्य तुम्हें
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| 48. | परब्रह्म अंतःकरण स्थित, शुचि शुभ्र ज्योतिर्मय प्रभो,
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| 49. | वह शुचि स्मिता रमणी मेरी ओर किंचित हँस दी।
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| 50. | श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचि: ।
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