2तिमुथियुस 22: 23 में लिखा है “जवानी की अभिलाषाओं से भाग और जो लोग शुद्ध हृदय से प्रभु का नाम लेते है उनके साथ धार्मिकता विश्वास प्रेम और शान्ति का अनुसरण कर परन्तु मूर्ख और अज्ञानपूर्ण विवादों से यह जानकर अलग रह कि इनसे झगड़े उत्पन्न होते हैं।”
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साधक यम-नियमों का पालन करते हुए शुद्ध हृदय से प्राणायाम करके अष्टचक्रों (मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, सूर्य, मनश्चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र, भ्रमर गुहा चक्र, सहस्त्रार चक्र) का भेदन करने से तीसरा नेत्र खोलकर कुंडलिनी तक जगा सकता है।
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रविदास जी का भक्ति की तरफ दृढ़-विश्वास देख कर वह साधू उठ बैठा तथा पारस को हाथ में मलता हुआ बोला, ' ठीक है रविदास जी! कोई जन्म के कारण ऊंचा नहीं होता, बल्कि कर्म के कारण ऊंचा बनता है | आपका दिल साफ है तथा भक्ति शुद्ध हृदय से कर रहे हो, अवश्य ही कल्याण होगा | '
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ब्रह्मा (हाथी) ने शुद्ध हृदय से पुकार की, उसी समय परमात्मा ने उसकी प्रार्थना सुनी और स्वयं नदी किनारे आए | सुदर्शन चक्र से तेंदुए की तारें काटी और हाथी को डूबने से बचाया | उसकी हाथी की योनि से मुक्त करवाया, फिर भक्त रूप में प्रगत किया | वह प्रभु का यश करने लगा | तेंदुए का जन्म भी बदल गया |
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शाकाडेन एवं मिरोकुसान में अंतर्राष्ट्रीय बैठकों के दौरान सदस्यों ने नम आंखों व शुद्ध हृदय से अपने अनुभवों को बांटा और एक ऐसा आध्यात्मिक वातावरण हुआ जिसमें अहंकार जैसी दुष्प्रवृत्तियां दूर हो जाती है और एक मनुष्य का आत्मविश्वास उस स्तर तक पहुंच जाता है जहां वह समाज के लिए कार्य करने को बोधित हो जाता है और अपने व्यक्तित्व में परिवर्तन लाने के लिए स्वप्रेरित हो जाता है।
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संत मण्डली ने ईश्वर उपमा का यश किया | भजन गाए तो सुन कर पीपा जी बहुत प्रसन्न हुए | संत भी आनंद मंगलाचार करने लगे, पर जब संतों को पता लगा कि राजा सिर्फ मूर्ति पूजक तथा वासनावादी है तो उनको कुछ दुःख हुआ | उन्होंने राजा को हरि भक्ति की तरफ लगाना चाहा | उन्होंने परमात्मा के आगे शुद्ध हृदय से आराधना की कि राजा दुर्गा की मूर्ति की जगह उसकी महान शक्ति की पुजारी बन जाए |