इस शैली-शून्य में प्रभाष जी शैलीकार थे और उनका गद्य कई मायनों में इस दौरान लिखे गए अच्छे साहित्य गद्य में बेहिचक शामिल किया जा सकता है।
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वस्तुतः निबन्ध की विधा में वे ऐसे शैलीकार के रूप में सामने आते हैं, जो रचना में आद्योपान्त अपनी रचना प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए चलता है।
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इस लोकवृत्त को लेखक ने एक सफल किस्सागो और शैलीकार के रूप में पेश करते हुए लोकजीवन और लोकरस के साहारे इतिहास के कंकाल में साहित्यिकता के प्राण फूँके हैं.
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शैलीकार की भाषा का पूरा विश्लेषण तब तक अधुरा माना जाता है जब तक साहित्यिक भाषा की समग्र प्रक्रिया उसके विविध स्तरों की संरचना के आधार पर सोदाहरण स्पष्ट नहीं की जाती।
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मुझे समीर लाल एक शैलीकार लगते हैं: श्री ज्ञानरंजन जी: ‘देख लूँ तो चलूँ' के विमोचन पर-२० जनवरी ऐसी कौन सी जगह है जहाँ समीर का अबाध प्रवाह नहीं है:आचार्य डॉ हरि शंकर दुबे-२४ जनवरी
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मूर्ख ३. शैलीकार, ४. आलोचक. १. माल मुहैया कराता है. २. उसे बाहर ले आता है. ३. उसका स्वाद बनाता है. ४. उसमें बुद्धि की जगहें भरता है.
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मुझे समीर लाल एक शैलीकार लगते हैं: श्री ज्ञानरंजन जी: ‘देख लूँ तो चलूँ' के विमोचन पर-सुप्रसिद्ध साहित्यकार, अग्रणी कथाकार और पहल के यशस्वी संपादक श्री ज्ञानरंजन जी के मुख्य आथित्य एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ हरि शंकर दुबे की अध्यक्षता मे...
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गद्य में शैली की अनेकरूपता की दृष्टि से इस युग ने ललित पत्रलेखन में चेस्टरफील्ड और वालपोल, संस्मरणों में गिबन, फैनी बर्नी और बॉज़वेल, इतिहास में गिबन, दर्शन में बर्कले और ह्यूम, राजनीति में बर्क और धर्म में बटलर जैसे शैलीकार पैदा हुए
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गद्य में शैली की अनेकरूपता की दृष्टि से इस युग ने ललित पत्रलेखन में चेस्टरफील्ड और वालपोल, संस्मरणों में गिबन, फैनी बर्नी और बॉज़वेल, इतिहास में गिबन, दर्शन में बर्कले और ह्यूम, राजनीति में बर्क और धर्म में बटलर जैसे शैलीकार पैदा हुए
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एक पारंपरिक “मुक्केबाज़” या शैलीकार (जिसे “बाह्य-योद्धा” भी कहा जाता है) तेज़ी से, लंबी दूरी के मुक्के मारते हुए, सर्वाधिक उल्लेखनीय रूप से चुभाते हुए, और अंततः अपने प्रतिद्वंद्वी को नीचे गिरा कर अपने और प्रतिद्वंद्वी के बीच अंतर बनाए रखने का प्रयास करता है.