ये यदि वहाँ नहीं मरते तो यहाँ जेलों में सड़ते या निर्दोष जनता को सताते, उनके लिये शोक करना कहाँ तक उचित है?
42.
शोक करना स्वामी के विधान पर असन्तोष प्रकट करना है और सर्वथा अनुचित है, वस्तुतः भगवान हमारी भलाई के लिये ही सब कुछ करते है।
43.
साथ ही सुख और दुःख दोनों है, फिर शोक करना किस काम का? बुद्धि और इन्द्रियां ही समस्त कामनाओं और कर्मो की मूल है।
44.
सभी प्राणी जन्म से पहले बिना शरीर वाले और म्रत्यु के बाद बिना शरीर वाले होते हैं उस विषय में शोक करना उचित नहीं है “
45.
क्रांतिकारी राष्ट्रसंत तरुण सागर महाराज ने कहा कि जो मिल न सका या फिर जो खो गया उसके लिए जिंदगी भर शोक करना उचित नहीं है।
46.
इससे हे अर्जुन! इस आत्मा को उपर्युक्त प्रकार से जानकर तू शोक करने के योग्य नहीं है अर्थात् तुझे शोक करना उचित नहीं है॥ 25 ॥
47.
दमनक के बहुविध समझाने पर पिंगलक ने संजीवक की मृत्यु का शोक करना छोड़ा और फिर दमनक को अपना मंत्री बनाकर पूर्वतत् अपना राज्य संचालन करने लगा |
48.
श्रीकृष्ण भगवान ने अर्जुन को गीताजी का उपदेश देते देते जीवन से सदैव जुडे हुए मृत्यु की अनिवार्यता समझाई, और उसका शोक करना उचित नहीं यह बात जोर देकर समझाई ।
49.
गाँव पहुँच कर मालूम चला कि उसी सुबह वहाँ एक वृद्ध महिला की मृत्यु हुई है इसलिए सबसे पहले काम था उस घर में जा कर परिवार से शोक करना.
50.
व्याख्या-यहाँ कबीर दास जीइस शाश्वत सत्य के और इशारा करते हैं कि यहाँ सब नश्वर है और जो आया है वह जायेगा इसलिए किसी की मृत्यु पर शोक करना व्यर्थ है।