भारत के सभी धर्मों के नागरिकों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ज़रिए स्वतंत्रता आंदोलन में अपना योगदान दिया, परंतु हमारे नेताओं की बहुसंख्यकवादी मानसिकता और स्कूली पाठ्यक्रम तैयार करने वालों के संकीर्ण दृष्टिकोण के चलते भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में अल्पसंख्यकों की भूमिका को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया गया है.
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संकीर्ण दृष्टिकोण से उत्पन्न साम्प्रदायिकता, सत्ता की छीना-झपटी, नागरिक समुदाय में राष्ट्र प्रेम की भावना का गिरता स्तर व भय और घृणा का माहौल-ये हालात हर देशवासी को सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि हम आज कहाँ खड़े हैं और किस दि शा की ओर अग्रसर हैं?
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भारत के सभी धर्मों के नागरिकों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ज़रिए स्वतंत्रता आंदोलन में अपना योगदान दिया, परंतु हमारे नेताओं की बहुसंख्यकवादी मानसिकता और स्कूली पाठ् यक्रम तैयार करने वालों के संकीर्ण दृष्टिकोण के चलते भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में अल्पसंख्यकों की भूमिका को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया गया है.
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How can a student of Christianity or any other religion truly understand any subject if he / she only has access to one narrow viewpoint? वह / वह केवल एक संकीर्ण दृष्टिकोण के लिए उपयोग किया है तो कैसे ईसाई या किसी अन्य धर्म के एक छात्र वास्तव में किसी भी विषय को समझ सकते हैं?
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शासन ने अपने अत्यंत संकीर्ण दृष्टिकोण के चलते राज्य कर्मचारियों एवं अधिकारियों को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर. एस. एस.) की शाखाओं में हिस्सा लेने की छूट देने का ऐसा ऐलान किया था जो न केवल भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता की मूल अवधारणा के विपरीत है अपितु कर्मचारियों के राजनीतिक गतिविधियों में भाग न लेने संबंधी नियम कानूनों का भी उल्लंघन है।
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[30] गंभीर मनोविज्ञान इस विश्वास पर कार्य करती है कि “मनोविज्ञान की मुख्यधारा ने मानव के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्र के नैतिक जनादेश के एक संकीर्ण दृष्टिकोण को संस्थागत रूप से संचालित किया है”[31] इसमें सामाजिक बुराइयों को व्यक्तिगत रूप से दूर करने का प्रयास किया गया है, तुच्छ और महत्वहीन अनुसंधान को प्रोत्साहित किया गया है, और ऎसी प्रक्रियाओं में भाग लिया गया है कि गंभीर संवीक्षा के तहत सकारात्मक तरीके विफल रहे हैं.
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[30] गंभीर मनोविज्ञान इस विश्वास पर कार्य करती है कि “ मनोविज्ञान की मुख्यधारा ने मानव के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्र के नैतिक जनादेश के एक संकीर्ण दृष्टिकोण को संस्थागत रूप से संचालित किया है ” [31] इसमें सामाजिक बुराइयों को व्यक्तिगत रूप से दूर करने का प्रयास किया गया है, तुच्छ और महत्वहीन अनुसंधान को प्रोत्साहित किया गया है, और ऎसी प्रक्रियाओं में भाग लिया गया है कि गंभीर संवीक्षा के तहत सकारात्मक तरीके विफल रहे हैं.
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एक समय था जब मै भी यह मानकर चलता था कि इस पार्टी में आगे चलकर देश को नई ऊँचाइयों, नए आयामों पर ले जाने की क्षमता है, लेकिन लगता है मेरा यह भ्रम भी श्री आडवाणी के प्रधानमंत्री बनने के ख्वाबो की तरह निरंतर क्षुब्दता की परतों तले दफ़न हो जाएगा! ऐंसा नही कि इनमे पढ़े लिखे, समझदार, ईमानदार और कर्मठ लोगो की कमी है, कमी है तो बस एक सुदृढ नेतृत्व की, पारदर्शिता की, दृड़ संकल्प की, कमी है अपने संकीर्ण दृष्टिकोण और निजी स्वार्थो को छोड़कर एक व्यापक परिदृश्य में सोचने की!