| 41. | वेदना तुम हो, तरल संवेदना तुम हो देह संज्ञाहीन मैं हूँ, चेतना तुम हो ।
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| 42. | संज्ञाहीन अवस्था में कहने लगा-' ' क्या करूं? ऐसा आदर्श फिर न मिलेगा, परन्तु...
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| 43. | उसकी पुनर्रचना हो जायेद्र एक बच्चे से बदल कर एक संज्ञाहीन मशीन में, जिसके कुछ उपयोग सामाजिक हों, कुछ जैविक।
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| 44. | इसमें धमनी और शिराएँ विविध कारणों से अवरूद्ध एवं विदीर्ण हो जाती हैं, जिससे तत्काल रोगी संज्ञाहीन हो जाता है।
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| 45. | इसमें धमनी और शिराएँ विविध कारणों से अवरूद्ध एवं विदीर्ण हो जाती हैं, जिससे तत्काल रोगी संज्ञाहीन हो जाता है।
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| 46. | उसकी पुनर्रचना हो जाए-एक बच्चे से बदल कर एक संज्ञाहीन मशीन में, जिसके कुछ उपयोग सामाजिक हों, कुछ जैविक।
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| 47. | इसमें धमनी और शिराएँ विविध कारणों से अवरूद्ध एवं विदीर्ण हो जाती हैं, जिससे तत्काल रोगी संज्ञाहीन हो जाता है।
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| 48. | छवि-छवि-छवि जैसे किसी दुर्घटना में इंद्रियाँ संज्ञाहीन हो जाएँ, वे जहाँ थीं, वहाँ खड़ी जैसे सचमुच बुत बन गईं।
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| 49. | संज्ञाहीन देह को हिरण्यमय स्वर्णिम किरणों ने सींच कर पुष्ट किया, देह में रक्त संचार होने से बिस्तर छोड़ने का मन हुआ।
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| 50. | उसकी पुनर्रचना हो जाए-एक बच्चे से बदल कर एक संज्ञाहीन मशीन में, जिसके कुछ उपयोग सामाजिक हों, कुछ जैविक।
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