संपादकीय देखरेख में बने कार्यक्रमों को कोई कंपनी प्रायोजित करे ये एक बात है मगर हम बात कर रहे हैं ऐसे कलेवर की जो विज्ञापन विभाग दिशा निर्देश पर तैयार होती है, जिसमें उस विषय के साथ संपादकीय विवेक के इस्तेमाल की इजाज़त नहीं होती, जो दरअसल संपादकीय सामग्री होती ही नहीं है और किसी क्लाइंट को खुश करके धन कमाने की गरज़ से तैयार की जाती है।